कैलाश 📚📝📝📝   (~ नाचीज़ ~)
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Joined 17 November 2019


Joined 17 November 2019

कुछ ख्वाहिशे थी जो नाचीज़ ने बदलने की सोची तो
कुछ साजिशे ऐसी थी जो नाचीज़ को गिराने की चली।।

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शीशे का मुकद्दर लेकर निकला था गालिब तेरी गलियों में,
सभी के हाथों में पत्थर थे कहां तक बचाता तेरी गलियों में।।

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वो..वो मुझे नादान समझकर गिराना चाहता है।
हां............ हां............... मैं नादान जरूर हूं,
लेकिन जितना तुम समझते हो उतना थोड़ी हूं।।

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जिनके खुद के घर शीशे के बने होते है
वो कभी दूसरो के घरो पर पत्थर नहीं फेंका करते है।।
जिनका लिबास पाक साफ होता है
वो कभी दूसरों पर कीचड़ नहीं उछाला करते है।

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बेगुनाह को गुनाहगार बना दिया,
रब का बन्दा है तू भी, क्या-क्या कर दिया,
जहां पर कीचड़ भी नहीं था, वहां नदी बताकर डूबो दिया,
कश्ती तेरी है, दरियां भी तेरा है, दफ़नाने का काम भी तुमने ही किया।।
अब तू ही बता कि यह कब तक चलेगा।।

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माना कि हम खुदा नहीं है,
लेकिन उसकी हर चालाकी,
खुदा हमें बता देता है।।

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मैं अपने बारे में क्या बताऊं महादेव
किसी कहानी के किरदार में तो
शायद हम ही गलत हैं।।

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एक दौर खत्म,,,,,‌‌‌‍ʼʼʼʼʼʼ,,,,,
नये दौर की बानगी,,,,ʼʼʼʼʼʼ,,,,,।

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वक्त ने उस मोड़ से गुज़ारा है,
जहां से एक नयी शुरूआत हो।
तालीम कहां और किस ओर से आये,
यह ज़हमत जिन्दगी तू क्यों उठाये।।

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क्यों हमसे इतनी दूर भागती है।

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