kagaz_kalam_ dawaat   (kagaz_kalam_dawaat)
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Joined 19 May 2020


Joined 19 May 2020
17 MAY 2022 AT 16:40

Go laugh at the places where you cried, change the narrative.

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20 JAN 2022 AT 23:00

मैं उससे कैसे कहता
मैं उदास हूँ,
मैंने कहा- मिलती रहा करो।

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14 FEB 2021 AT 20:11

आओ बैठो कभी किसी इतवार को,
मै वैसा नही हूँ, जैसा मिलता हूँ सोमवार को।

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7 DEC 2021 AT 22:18

Kisi ne poonchi keemat to hairaan reh gya..
Apni nazron me koi kitna gareeb tha..!

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14 NOV 2021 AT 23:07

अब वो मेरे ही किसी दोस्त कि मेहबूबा हैं
मैं पलट जाता मगर पीछे बचा कुछ नहीं था!

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10 NOV 2021 AT 23:26

Achanak mar gaya kirdaar koi,
Adhoora reh gaya qissa hamara!

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5 NOV 2021 AT 22:05

तुम दिवाली के अगले दिन का खालीपन हो।

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5 NOV 2021 AT 20:42

मेरे घर से दफ़्तर के रास्ते में, तुम्हारे नाम की इक दुकान पड़ती है,
इत्तेफाक देखो, वहाँ दवाइयाँ मिला करती हैं।

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30 OCT 2021 AT 0:50

घर भरा होगा मेहंगे सामान से, शिशे दाग़ी नही होंगे,
बच्चे भी तमीज़दार होंगे, बाग़ी नही होंगे,
वक़्त पे खाना मिलेगा, वक़्त पे सब काम होंगे,
सजे संवरे लोग होंगे, रंग बिरंगे जाम होंगे,
एक रात नींद खुलेगी कोई एक-दो बजे,
तुम उठोगी बिना आहट के, खिड़की पे जाओगी,
एकदम से लगेगा कोई कमी सी है कहीं,
तुम ज़ुल्फे खोलोगी तो वहाँ नही गिरेंगी,
जहाँ तुम चाहोगी।

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25 OCT 2021 AT 21:22

Udhar unki chal rahi hai auraon se guftagu,
Idhar hamari khud se bhi bol chal band hai.!

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