Go laugh at the places where you cried, change the narrative.
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मैं उससे कैसे कहता
मैं उदास हूँ,
मैंने कहा- मिलती रहा करो।
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आओ बैठो कभी किसी इतवार को,
मै वैसा नही हूँ, जैसा मिलता हूँ सोमवार को।-
Kisi ne poonchi keemat to hairaan reh gya..
Apni nazron me koi kitna gareeb tha..!-
अब वो मेरे ही किसी दोस्त कि मेहबूबा हैं
मैं पलट जाता मगर पीछे बचा कुछ नहीं था!-
Achanak mar gaya kirdaar koi,
Adhoora reh gaya qissa hamara!-
मेरे घर से दफ़्तर के रास्ते में, तुम्हारे नाम की इक दुकान पड़ती है,
इत्तेफाक देखो, वहाँ दवाइयाँ मिला करती हैं।-
घर भरा होगा मेहंगे सामान से, शिशे दाग़ी नही होंगे,
बच्चे भी तमीज़दार होंगे, बाग़ी नही होंगे,
वक़्त पे खाना मिलेगा, वक़्त पे सब काम होंगे,
सजे संवरे लोग होंगे, रंग बिरंगे जाम होंगे,
एक रात नींद खुलेगी कोई एक-दो बजे,
तुम उठोगी बिना आहट के, खिड़की पे जाओगी,
एकदम से लगेगा कोई कमी सी है कहीं,
तुम ज़ुल्फे खोलोगी तो वहाँ नही गिरेंगी,
जहाँ तुम चाहोगी।-
Udhar unki chal rahi hai auraon se guftagu,
Idhar hamari khud se bhi bol chal band hai.!-