किस्मत से परे , मिला जो मुझमें ना था ।
वक़्त को संभाल रखा , मेरे वो अपना सा था ।।
बिछुड़ गया जो बेवक़्त , कहीं एक सपना सा था ।
जो देखा आँख खोल कर , ना कोई दूर-पास गम सा था ।।
मैं खड़ा शांत वहाँ , बिचलता जैसे एक मन सा था ।
कहना चाहता चिल्लाता सब कुछ , बेबस बस खुद्दार इंसान सा था ।।
-