नारी तू नारायणी,
तू चंडी, तू ही दुर्गा तू
तू ही तो कात्यायणी तू
वेद ऋचाओ की गरिमा सौन्दर्य शिल्पि की तू है
महिमा तू प्रेरणा स्रोत हर मानव की तू ममता की हर परीसीमा है
आदि तू ही और अंत तू ही और तू ही जीवन वाहिनी
नारी तू नारायणी तू मीरा का है भक्ति रस राधा का वृन्दावन हैl
तू गंगा जमुना सरस्वति का प्रयागराज संगम है तू
तू पवित्रता में सीता है ज्ञान स्रोत की गीता है
तू द्रुपद सुता पान्चाली है तो क्रोध रूप में काली है तू माँ के रूप में ममता है।
तू जीवन की है दायनी नारी तू नारायणी
तू शक्ति रूप में लक्ष्मीबाई है राष्ट्रभक्ति में पन्नाधाई
शत्रु को चित करने वाला मुक्का तू मैरी कोम का तू मिथाली का बल्ला है
उंचाई नापती व्योम का कल्पना की उड़ान तू ही किरण बेदी की शान तू ही तू लता कोकिल सी गायनी
नारी तू नारायणी नारी तू नारायणी— % &-
उसने कहा
कैसे होगा प्रेम
तुम अलग, में अलग
तुम्हे पँसन्द है ऊँचे पहाड़
मुझे पँसन्द है गहरे समंदर
तुम रहना चाहते हो घाटियों में
मेरा वक्त गुजरता समंदर किनारे कैसे होगा प्रेम सोचा कभी..
मेने कहा पहाड़ जुड़े होते है समंदर से एक दिन यादों से भरे काले घने बादल से कहना बहा लाए मुझे घाटियों से नदियों के रास्ते बादलों और नदियों से
तुम ऐसा करना
बादलो से सन्देश भेजना में जवाब भेजूंगा नदियों से
फिर हम अलग नहीं होंगे
हम जुड़े रहेगें प्रेम की प्रकृति से
उसने कहा
कैसे होगा प्रेम
तुम अलग, में अलग
तुम्हे पँसन्द है ऊँचे पहाड़
मुझे पँसन्द है गहरे समंदर
तुम रहना चाहते हो घाटियों में
मेरा वक्त गुजरता समंदर किनारे कैसे होगा प्रेम सोचा कभी..
मेने कहा पहाड़ जुड़े होते है समंदर से एक दिन यादों से भरे काले घने बादल से कहना बहा लाए मुझे घाटियों से नदियों के रास्ते
बादलों और नदियों से तुम ऐसा करना
बादलो से सन्देश भेजना में जवाब भेजूंगा नदियों से फिर हम अलग नहीं होंगे
हम जुड़े रहेगें प्रेम की प्रकृति से
आधा वक्त समंदर किनारे आधा वक्त पहाड़ो पl-
कभी तानों में कटेगी, कभी तारीफों में,
ये जिंदगी है यारों पल पल घटेगी !
पाने को कुछ नहीं, ले जाने को कुछ नहीं,
फिर भी क्यों चिंता करते हो इससे सिर्फ खूबसूरती घटेगी
ये जिंदगी हैं यारों पल-पल घटेगी !
बार बार रफू करता रहता हूँ जिंदगी की जेब,
कम्बख्त फिर भी निकल जाते हैं खुशियों के कुछ लम्हें !
जिंदगी में सारा झगड़ा ही ख़्वाहिशों का है...
ना तो किसी को गम चाहिए, ना ही किसी को कम चाहिए !-
हारा हूँ सौ बार गुनाहों से लड़-लड़कर,
लेकिन बारंबार लड़ा हूँ मैं उठ-उठकर,
इससे मेरा हर गुनाह भी मुझसे हारा मैंने अपने जीवन को इस तरह
उबारा डूबा हूँ हर रोज़ किनारे तक आ-आकर
लेकिन मैं हर रोज़ उगा हूँ जैसे दिनकर,
इससे मेरी असफलता भी मुझसे हारी
मैंने अपनी सुंदरता इस तरह सँवारी-
ये कहानी एक लड़की की है जिसे मैंने नही जाना है गुजरे हुए वक़्त मे उसने वो सब देखा है, जो लगता है झूठ उसे सारा जमाना है
अतीत के कुछ पन्नो को उसने इतना संजोया है,
उसकी आंखें नम रहती है मुझे नही मालुम उसने क्या खोया है ,वो हमेशा मुस्कुरा कर दर्द को छुपाती है
मैं इतनी कोशिश करता हूँ फिर भी कुछ नही बताती है
मैं जानना चाहता हूँ उन दबे हुए पन्नो कि कहानी
आख़िर क्यों है वो ऐसी, कैसा था बचपन और कैसी है जवानी
कितनी अधूरी मेरी कहानी है इसमे नही कोई गुड़िया ना ही नानी है
बस एक लड़की है जो बहुत सयानी है और ना जाने क्यू उसने ऐसी जिद ठानी है
मैंने भीड़ में उसे मुस्कुराता पाया है पर झूठी थी वो मुस्कुराहट ये सिर्फ मैने ही जानी है ना जाने कब उससे बात हो और वो मुझे बताए वो सब बहुत परेशान हूँ मैं क्यूँ की अधूरी मेरी कहानी है-
कुछ बचपन की मैं बात लिखूं या यादों की सौगात लिखूं
इस दिल के सब जज़्बात लिखूं या पूनम की वो रात लिखूं या आँखों से वो वार लिखूं
निश्छल पहला प्यार उन होठों की में धार लिखूं
किन शब्दों में जाने मै वो निश्छल पहला प्यार लिखूं
वो प्यारी सी मुस्कान लिखूं या दिल के सब अरमान लिखूं
उन ज़ुल्फ़ों से ढलती रात लिखूं या दिन भर का वो साथ लिखूं
वो मीठे से तकरार लिखूं या वो ख़ामोशी में यार लिखूं
किन शब्दों में जाने में वो निश्छल पहला प्यार लिखूं
वो बलखाती सी चाल लिखूं
कोमल से वो गाल लिखूं
तेरी बातों की वो मिठास लिखूं या शब्दों में एहसास लिखूं
कुछ ग़ज़लें तुम पर लिख दूँ मैं और उन सब का मैं सार लिखूं
किन शब्दों में जाने मैं वो निश्छल पहला प्यार लिखूं-
बीते दिनों में तुम्हारी यादें खूब आई मैंने कोशिश की तुमसे बात हो जाए पर तुम इतने नाराज़ रहे मेरी एक न सुनी ना खुद कि
सुनाई अच्छा क्या अब भी नाराज़ हो या बस ऐसे ही मुझे सताना चाहती हो
बात कर लो बहुत मुश्किल हो रही है ये तन्हाई
तुम्हारी तस्वीर मैंने क़िताब में रखी हुई जिसे मैंने किसी को नही दिखाई
सोचता हूँ तुम्हें पूरा लफ्ज़ो में उकेर दूं पर इन दिनों तो ख़त्म है
मेरी कलम की भी स्याही सच बोल रहा हूँ
इस बार यक़ीन करो बीते दिनों में तुम्हारी यादें खूब आई-
जिन नैनों में पिया बसे मैं उनको देख न पाऊँ
एक बार जो देख लूँ तो देखी देखी जाऊं
बात करन जो पिया जी आवे
बात बात पर हकलाऊँ
मीरा सी बन बैठी मैं तो
बस कान्हा कान्हा गाउँ-
नाटक शुरू नही हुआ था
मैं भी दुनियावी बातों में मशगूल बैठा था,
तभी उन्होंने मुझे मेरे नाम से पुकारा और बड़ी ही संजीदगी से मुझसे मेरे बारे में बातें पूछी,
उनके इतने प्यार से बात करने के तरीक़े से मुझे यक़ीन हो गया था
मैं उर्दू नही अदब सुनने आया हूँ जिसमें प्यार का मतलब "मोहब्बत " होता है।-