ख्वाब तो था ख़ुद के आसमां का
कुछ यूं उलझे सितारों में
कि,
चाँद में ही अपना
बागवां बना बैठे।।
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वैसे बता दूं
मै पहाड़ी, पहाड़ मेरी पहचान है
देवभूमि से हूं,... read more
कुछ वक्त निकाल लिया करो
ख़ुद के लिए भी
यारो...
आगे बढ़ने की होड़
और जिंदगी की दौड़
हमें वक्त से पहले
बूढ़ा कर रही है.।
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वक्त ही तो है
जो ले आता है मौन
बेवक्त जुबां पे...
वरना कौन नहीं चाहता
चहकता यौवन...
मौन ही तो है
जो ले आता है झुर्रियां
बेवक्त चेहरे पे....
वरना कौन नहीं चाहता
नूर ताउम्र...।-
निकली तो थी घर से
जिन्दगी की तलाश में एक दिन
पहाड़ों से निकली नदी सी
स्वच्छंद.....
सोचा था मंज़िल मिलते ही
लौट आऊंगी इसी स्फूर्ति से
तरोताजा करने अपनों के मन को
मगर.....
थपेड़ों ने चट्टानों की
रुख ही बदल दिया
कलकल करती ताज़गी भरी नदी को
गुजार कर कई पगडंडियों से
अंत में एक शांत समंदर बना दिया.।
जो कभी लौट ही न सकी
अपने मूल तक...-
तन्हाई तब महसूस नहीं होती
जब कोई दूर हो गया हो...
अपनों की रुसवाई
महफ़िल में भी तन्हा कर देती है..।
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हम नादान से भोले भाले हैं
हम सबके दुःख में रोने वाले हैं
चकाचौंध से सरोकार नहीं है
क्योंकि हम गांव के रहने वाले हैं।
रंगीन दीवारों में कैद भले हों
हमें माटी की खुश्बू प्यारी है...
बोली भी भाषा के संग में आती है
जेंटलमैन तो कहते हैं देखो ये देहाती है।-
समझ न पाए कि
क्या चाहते हैं हम
रूबरू होते हैं सबसे
पर कई बार अपने आप
से ही भागते हैं हम..।-
हर चेहरे पर एक चेहरा है
फिर भी नक़ाब लगाए फिरते हैं...
क्या समझिएगा शख्सियत किसी की
यहां सब सस्ते तन पर...
महंगे लिबास लगाए मिलते हैं..।-
क्यों किसी नाम का मोहताज़
हो जाता है कोई रिश्ता..
दिल के सबसे करीब होता है जो
जिंदगी में उतना ही दूर
हो जाता है वो रिश्ता...।
जहां बस नाम के रह जाते हैं
खून के रिश्ते
वहां सब रिश्ते निभा जाता है
एक बेनाम सा रिश्ता...।-