खुले आसमां में मन ने पंख फैलाकर उड़ना चाहा था
सपनों को स्वतंत्र देख मन प्रफुल्लित हुआ था
असल में बांधे रखा था न जाने डोर किस हाथ में थी
परिवार ? समाज ? या खुद के ?
जिसका जवाब शायद इंसान खुद ही था
क्यूंकि इंसान तब तक पराधीन है
जब तक खुद चाहे
उसने खुद बांध रखा है खुदको
जिस दिन उसूलों से स्वतंत्र हो गया
वो आजाद हो जाएगा-
कोई उस शक्स से कहदो वो मर गया मेरे अंदर
लौट कर आओ या ना, खौफ बस गया मेरे अंदर
इश्क़ से राब्ता नहीं रूह को छूकर गुजर गया मेरे अंदर
हसीन थे पल कोई अजीज सपना टूट गया मेरे अंदर
इतराते थे खुद पर मुझको निचोड़ गया मेरे अंदर
पाकर जहां को पाया था जिसे मुझे तोड़ गया मेरे अंदर
दुनिया मतलबी लगती थी वो समाया मेरे अंदर
विश्वास करके आत्मविश्वास डगमगाया मेरे अंदर-
प्यार है, कहने से नहीं निभाने से गहराई होती
छोड़ दे बीच राह में, प्रेम से उसकी रुसवाई होती
तुम खुदको ना तड़पाओ किसी गैर के लिए
गर तेरा होता तो उसको भी कहा नींद आई होती
सुख चैन लूटवा के बैठे हो उम्मीद लिए
तन्हा छोड़ा,काश फिर आस ना लगाई होती
हार सा महसूस हुआ बची ज़िन्दगी के लिए
बहने दो अश्कों को फिर ही शुरुआत नई होती-
गुरूर था मोहब्बत पर अपने
ताउम्र पर्दे में रहे, वो चतुर हुए
आंखो से नदियां बहती रही
देखते ही देखते, वो मजबुर हुए
तड़पन में पूरी रात पाया बेसहारा
साथ हूं कहकर, वो मगरूर हुए
ख्वाब पूरे होने से पहले चूर हुए
नज़दीक आने से पहले,वो हमसे दूर हुए-
खुदको अपनी ताकत बनाओ
कमजोरी नहीं
कोई तुम पर हावी होता है
वो कमजोरी है तुम्हारी
गर ताकत होता तो
कमजोरी नहीं बनता तुम्हारी
ज़िन्दगी में उतार चढ़ाव लाज़मी है
जब कोई आपकी कमजोरी बनने लगे
उसको छोड़ दो
रिश्तों में गर ताकत ना हो
वो रिश्ता खोखला है-
तपती रूह
झिलमिल वर्षा
शांत कर देती
किरण सूरज की तृषा
ढलती शाम
पंछी की चहचहाट
मंद मंद मुस्कुराए चांद
लड़की ख़ामोश चुल्ला चोखा कर
परोसे थाल
मन उड़ना चाहे
मौसम के संग
पतंग का मांझा बना समाज
बरसों से भूल बैठी
वो सपनों की उड़ान-
गैरों से उम्मीद में
रुलाया खुदको
नम थी आंखे
आग में जलाया खुदको
शांत से माहौल में
तुफां बनाया खुदको
वो शक्स करीब था
सबके साथ भी
मैंने अकेला किया खुदको
मरने वाले थे मुझ पर भी कहीं
मैंने उसके पीछे मारा खुदको
साजिशें सारी खिलाफ हुई
प्यार की भूखी कहलाया खुदको
जिंदा थी...
अब मरा पाया खुदको-
शेरों शायरी के लिए तजुर्बा होना भी जरूरी है
दर्दो को लिखने के लिए दर्द का होना भी जरूरी है
बात गर अच्छाई की हो तो चुप है जमाना
बुराई पर उनका बोलना भी जरूरी है
कौन अपना कौन पराया हमको पता होना भी जरूरी है
कितने गिर सकते है लोग इस जहां में
कुछ बातों को हवा देना भी ज़रूरी है
चंद लोग जिनकी उड़ान उनकी सोच तक
उनका फड़फड़ाना भी जरूरी है
हारकर भी जीत जाते है कुछ लोग
आंखो का खुलना भी जरूरी है
दुनिया को अपने जैसा समझना बन्द करो
नेकी पर जो चल रहा उन्हें चलने दो
पत्थर जो राह में आए उसे हटा दिया जाता
एक बार गिरकर उठना भी जरूरी है।-
खुशियां बेहिसाब मांगी थी रब से
सबका आज हिसाब करते है....
तुम मुहब्बत इश्क़ मेरी जान हो
झूठे वादों का आज पर्दाफ़ाश करते है....
जाओ जियो ज़िन्दगी मेरे बग़ैर
तुम्हारा मेरा किस्सा आज ख़त्म करते है....
जनाज़ा उठ जाए इस जहां से मेरा
खुदको खुद से आज आजाद करते है....-
वास्ता तो अब भी है सबसे
पर दिल में मोहब्बत न रही
अभी अभी आयना देख आई,
मैं...मैं तो हूं पर पहले सी न रही-