काव्यमार्ग   (काव्यमार्ग)
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Joined 27 June 2019


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साथ छोड़ ना दें मेरा
ये सोचता हु अक्सर,
क्युकी दिल को जाम से
सीचता हु अक्सर।

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हमें तुम क्यूं गुमराह कर रहे हो,
जब किसी और से आंखे चार कर रहे हो।

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भरोसा करके किसी पर
वो अब पछताते है,
जब उनके जज्बात ही
मजाक बन जाते हैं।

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कुछ हाथों में रख लिए
कुछ कंधों पे टांग लिए
पाना है मुझे मंजिल बस
ये ठान लिए तो ठान लिए।

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आने का खबर सुनकर तेरी
हर वक्त- हर नज़र सड़क देख लेते थे
चंद खुशी मिल जाती थी मुझे
जब तुम्हे देख लेते थे।

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बेफिजूल बातों से लोगों की
तुम संभल पड़ो राही,
लेकर ख्वाब कंधे पे
बस तुम चल पड़ो राही।

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मेहनत ज्यादा
थोड़ा आराम करना जानता हु,
किसान हु,
बंजर भूमि से भी
सोना उगाना जानता हु।

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पाकर मंजिल भी
आज मेरा पांव लड़खड़ा रहा है,
बीते कुछ दिनों से
जन्मभूमि की याद आ रहा है,
तब रख कंधे पे चल दिया
मंजिल को अपनी
जब लगा की बिहार बुला रहा है।

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जिसकी चाह थी पहले मुझे
वो अब मिला तो क्या हुआ,
जख्म दिल तक पहुंच चुकी
अब थोड़ी मरहम लगा तो क्या हुआ?

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इजहार कीजिए इश्क का
ये ढल जाए रात तो क्या फायदा,
अभी जब मन मिल रहे है दोनो का
कल मन बदल जाए तो क्या फायदा।

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