आज मैंने कई कोशिशें की, कि मैं फिर से पढ़ने बैठू वो किताब जिसे मैंने हाल फ़िलहाल ही पढ़ना शुरू किया था। पर नजाने क्यूँ बार बार पढ़ने के बजाय मेरा कुछ लिखने का मन कर रहा था। मैं चाहता था कि मैं लिख डालूँ और कई खूबसूरत नगमें इस बारिश पर।
तो लिखने को अब जो ही मैं उठा एक पेन और पेपर की तलाश में, तो नज़र पढ़ी इस हॉस्टल की पुरानी सी अलमारी में रखे, मेरे कुछ सामान में उन कई पेनों के बीच एक पेन पर जिसे मुझ जैसा आम इंसान इस्तेमाल करने के बजाए सम्भाल कर रखता है, क्यूंकि वह अक्सर किसी ख़ास का तोहफ़ा होती हैं।
जी, ये खूबसूरत पेन उसी शख़्स का दिया एक तोहफ़ा था जिसपर हमने हजारों नज़्में लिखीं जरूर, पर शायद बूझा उन्होंने हमेशा कम ही।
पर खैर, आज उस पेन से मैंने लिखना तय किया क्यूंकि मैं चाहता हूँ कि लिखते लिखते आज मैं ख़तम कर दूँ इसकी स्याही ही ताकि फिर कभी यूँही किसी पेन की तलाश में ये और इससे जुड़ी तमाम यादें मुझसे कभी दुबारा ना टकरा पाए..!!
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