काव्या पुरोहित   (Ignited soul)
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मलंग❤❤
Instagram- 21ignitedsoul
Joined 29 July 2018


मलंग❤❤
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Joined 29 July 2018

आज मुझे मिली ,
एक जानी पहचानी छत्त
एक पुरानी शाम
कुछ पुराने गीत
एक पुराने कप में ,
रोज़ की तरह बनने वाली
अदरक वाली चाय....

सब पुराना होते हुए भी,
फ़िर भी नया सा मैं
एक नया डूबता सूरज
मुझमें...!!!

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ये सर्दियों की जो बारिश है ना..
मुझे तो बेहद पसंद है!
कपड़े न सूखने के डर से ज्य़ादा,
बादलों से भरे अपने शहर को..
देखने का सुकूं है!!

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आज मैंने कई कोशिशें की, कि मैं फिर से पढ़ने बैठू वो किताब जिसे मैंने हाल फ़िलहाल ही पढ़ना शुरू किया था। पर नजाने क्यूँ बार बार पढ़ने के बजाय मेरा कुछ लिखने का मन कर रहा था। मैं चाहता था कि मैं लिख डालूँ और कई खूबसूरत नगमें इस बारिश पर।
तो लिखने को अब जो ही मैं उठा एक पेन और पेपर की तलाश में, तो नज़र पढ़ी इस हॉस्टल की पुरानी सी अलमारी में रखे, मेरे कुछ सामान में उन कई पेनों के बीच एक पेन पर जिसे मुझ जैसा आम इंसान इस्तेमाल करने के बजाए सम्भाल कर रखता है, क्यूंकि वह अक्सर किसी ख़ास का तोहफ़ा होती हैं।
जी, ये खूबसूरत पेन उसी शख़्स का दिया एक तोहफ़ा था जिसपर हमने हजारों नज़्में लिखीं जरूर, पर शायद बूझा उन्होंने हमेशा कम ही।
पर खैर, आज उस पेन से मैंने लिखना तय किया क्यूंकि मैं चाहता हूँ कि लिखते लिखते आज मैं ख़तम कर दूँ इसकी स्याही ही ताकि फिर कभी यूँही किसी पेन की तलाश में ये और इससे जुड़ी तमाम यादें मुझसे कभी दुबारा ना टकरा पाए..!!
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मैंने इस ज़मी को..
उसकी नजरों से,
थोड़ा ज्यादा देखा है...
उसने बेज़ान,ज़ंक लगे ये कैदख़ाने देखे,
मैंने कई काफ़िरों का ठिकाना देखा है..!!

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ट्रेन में सफ़र करना ,
उसकी मनपसंद चीज़ों में से एक था..
रातों में अक्सर फोन पर,
ट्रेन की आवाज़ सुनकर सोया करता था..
जाने कितनी ही कहानियों को अपना करता हुआ,
और खुद की कहानी को औरों को सौंपता हुआ..
तमाम रातें यूँही गुज़ारा लिया करता था,
फिर ....
एक दिन ..!!
मैं उससे मिली और मुझे भी जैसे इस ट्रेन के सफ़र से ,
इसकी आवाज़ से !!
और इसमे सफ़र करती हुई उन तमाम कहानियों से ,
इश्क़ हो गया..!!

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कुछ ख़ुद को देखकर भी याद करता हूँ उसको, फ़कत
पसंद आता था उसको, मुस्कुराना मेरा..!!

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इन तारों भरे आसमां पर लिखने में ,
कई बार बेकार हुआ हूँ मैं..
खैर, तुम्हें देखकर कभी कहाँ कुछ कह पाया हूँ मैं..!!

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ख़्याल कई हैं इस आसमां पर मेरे,
जैसे हैं तुझपर भी..!!

ये बादल कहाँ हैं छिप गए,
सीख गये हैं काफ़ी कुछ तुमसे ही..!!

मुस्कुरा रहा हूं इस आसमां को देखकर,
नज़र आ रहा है यहां पर भी शायद तू ही..!!

समझ आते नहीं क्या इशारे मेरे,
पढ़ने थे ये पत्थर दिमाग पर ही..!!

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समझ आते नहीं क्या इशारे मेरे,
पढ़ने थे ये पत्थर दिमाग में ही..!!

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मुस्कुरा रहा हूं इस आसमां को देखकर,
नज़र आ रहा है यहां पर भी शायद तू ही..!!

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