चाॅंद सी ख़्वाहिश, है वो मेरी,
एक रात सा, उसको चाहूँ मैं,
एक सुबह के किरणों जैसी वो,
एक धूप सा, ख़ुद जल जाऊॅं मैं,
फिर छांव करे, वो बाहों की,
और नींद में, घुल सा जाऊॅं मैं
फिर देखूँ, उसके ख़्वाब सभी,
और उसका कभी, हो जाऊॅं मैं
मेरे दिल से, न पूछो हाल मेरा,
अब क्या ही कहूॅं, और कैसा है,
उसको जो, न देखूॅं, पल भर भी,
तो सांस तलक, न ले पाऊॅं मैं
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