'क'मल 'वि'शनोई   (Kayvee)
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Joined 3 April 2020


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Joined 3 April 2020

कोई आए कोई जाए
मैं तो दरवाजा हूँ l
कई राज सम्भाल रक्खे हैं
कई राज़दारो के ll

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बहुत टूटा मगर चलता रहा हूँ
बटन अपनी कमीज के सम्हाले हुए l
मेरी औक़ात पर ना तंज कर तू
या यूँ कर कि मिटा दे मुझको ll

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कितनी खामियां गिना दी उसने मेरी
जिसपे हम जान निसार करते रहे ll

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दर्द भी पीछे से बार करके गया
कि इंसान से सीखा होगा ऐसा हुनर ll

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पहली खाली
दूसरी तन्हा
तीसरी में मुस्कान कहाँ ll

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"नारी" सी हो गयी है
उल्टी सी हो गयी है
इतना सा अच्छा नाम
पापा ने जो है रक्खा "रीना"....

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तू क्यूँ नाराज है
नहीं मालूम
मालूम है तो बस इतना
कि तुझमें जान बसती है ll

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तेरे जूतों में पैर मेरे भी

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सिहर जाता हूँ सोच कर भी
ज़ायका तेरे लबों का कुछ यूँ भाया...

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यूँ भुलाना उसको अब ठीक नहीं
कि साँसे मेरी उसकी साँसो पर टिकी है
और जो मयस्सर है नहीं भगवान तक को
उसकी आँखें बस मुझी पर क्यूँ टिकी है

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