कोई भूख तो है
जिसे तृप्त नहीं कर पाता
आंगन घर का
और चला जाता है
जंगल का का बाघ गांवों में
गांवों का आदमी कस्बों-शहरों में
शहर का आदमी नगर-महानगर में
और
महानगरों का आदमी
अमरीका-कनाडा जैसे देशों में..
सागर-महासागर के पार..
कुछ ज्यादा की भूख
बहुत दूर ले जाती है घर से
फिर से लौटने
उन प्रवासियों को
खोज में सुकून की
जो प्रायः उगते हैं
उन्हीं घरौंदों में - आंगनों में..
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❤️ Anjali 💍
छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया ❤️
रायगढ़ , छत्तीसगढ़
My insta id: @y_kamal052... read more
कोई टीस, कोई कसक, कोई सवाल चुभता होगा
सुना है ज़ख्मी है, मरहम की जानिब तो रुकता होगा
मस'ला ये नहीं है कि खून खौलता नहीं तबीयत से
परवरिश तहज़ीब से लबालब है इसलिए झुकता होगा
जिससे जैसा पाया है सब बा-इज़्जत लौटाया जाएगा
और सब कुछ सूद समेत होगा, इंतजाम पुख़्ता होगा
तहकी़क-ए-जहां ग़ालिब-एलिया भी ठुकरा दिए गए
फ़िर इस जहां में जीने का और क्या ही नुस्खा होगा
बताओ कितनी बुरी बात है कि इतना उधार बाकी है
लेन-देन पुराना है,देर सही सबका हिसाब चुकता होगा.
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आज- काल तो इंहा बात बात म कब्जा दिखत हे
बात अइसे हे की घाट घाट म कब्जा दिखत हे ,
ये धान के कटोरा म हामी ल बदरा समझे जाथे
मोला तो संगवारी राज पाट म कब्जा दिखत हे..
(अनुशीर्षक म पढ़व)-
अभी भी शेष है बहुत कुछ लिखा जाना
पुरुष का पुरुष होना कोई संयोग नहीं
स्वीकार नहीं जग को रोया जाना हमारा
तो लगता है कठोर होना कोई रोग नहीं
तथाकथित संसार पुरुष प्रधान है,पर
हमारे अधिकार क्षेत्र में बस वियोग नहीं
भावों का क्षरण भी एक गंभीर रोग है
इसके लिए कोई औषधि- कोई योग नहीं
हम मान्य न हुए कभी पीड़ित के तौर पर
क्योंकि हमारे लिए कोई पुरुष आयोग नहीं
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माटी के पीरा
परदेसिया चलन मा मोर सब्बो नेंग बंधा गै
भाखा के चलनी म मोर बोली छंदा गै
होवत हे मोर चोला के नाम परदेसिया
कोन डहर म मोर सब दुलारवा गंवा गै
सुन ले तैं माटी-महतारी के पीरा
ये कइसे फांदा म मैं हर फंदा गैं
डेहरी ले मोरे मई हर नंदा गैं
डेहरी ले मोरे मई हर नंदा गैं-
तू कुरान ए शरीफ बन जाना
मैं तेरा हदीस बन जाता हूं
तू बन जा लकीर मेरी हथेली की
मैं तेरे माथे का नसीब बन जाता हूं
तू मेरी मोहब्बत बन जा
मैं तेरा अजीज़ बन जाता हूं
अपने नाम के बाद मेरा नाम लिख लेना
मैं खुशनसीब बन जाता हूं
तू लगा लेना सिंदूर मेरे नाम का
मैं तेरा हबीब बन जाता हूं
हर्फ-दर-हर्फ तू खिलना मेरे लबों पे
तुझे लिख-लिख मैं अदीब बन जाता हूं
आजा ज़िंदगी को ग़ज़ल कर लेते हैं
तू मेरी क़ाफिया बन जा,
मैं तेरा रदीफ बन जाता हूं....-
एक बार फ़िर
निर्णय नहीं हो पाया
खुद को नदी हो जाने दूं
या
मरुस्थल ही रहने दूं
कहते सुना है मैंने
"लड़के थोड़ी ना रोते हैं "
इसीलिए
खोज रहा हूं...
कोई तर्क,
साहित्य,
कोई काव्य
या महाकाव्य...
जो
पुख़्ता प्रमाण दे सकें..
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रिक्तता...सब तोड़ देती है..
अस्थि-विहीन तथा निराकार वस्तुएं भी..।।
( अनुशीर्षक में पढ़ें )
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जिसे मौन कहे, उस बात की तरह
तेरा होना मुझमें जज़्बात की तरह
तुम उजली गुनगुनी धूप सी सुनहरी
तुम ही तो हो चांदनी रात की तरह
बड़ा बेरहम था, एकाकीपन ये मेरा
मिल गई तुम मुझे सौगात की तरह
मैं तप्त, जलता, प्यासा मुसाफ़िर हूं
मुझे तृप्त कर दो बरसात की तरह
निष्ठा मेरी, चांद के लिए चकोर सी
मैं रिक्त हूं तुम बिन निर्वात की तरह
❤️KamalAnjali❤️
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समय को मात देता
जीवन भाग रहा है,
शांति नहीं है
केवल एक दाग़ रहा है,
अतृप्त है
मरीचिका में जल खोजता है,
अशांत जीवन
कोलाहल में हल खोजता है।
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जीवन में भी धारा 144 लगनी चाहिए
यह विकृत हो गई है
जीवन की शांति भंग नहीं हुई
"शांति अपहृत हो गई है.."-