कुछ अधूरी मुलाकातें
कुछ अधूरी बातें
और कुछ अधखिले सम्बंध
यही कमाई है कमोबेश सभी की
इस संसार में -----
और तुम कहते हो
"नर तन भव बारिधि कहुं बेरो" ----
जिस नाव में इतने छिद्र हों
कैसे करेगी भवसागर पार वो?
कौन कराएगा पहचान कर्णधार की!
कौन बताएगा
किधर को बह रही है
तुम्हारे अनुग्रह की हवा !!-
कुछ अनकही बातें
तुम्हारे और मेरे बीच
पश्चाताप बन कर रह गई ---
दब गए दुनियां की मर्यादा तले
मिलन के कितने सुनहरे पल----
अब वही दुनियां
कर रही मुझसे किनारा ---
मैं अकेला
दुखद स्मृतियों के
उजड़ते खंडहरों में-
तुम अब शिकवा भी नहीं करते
और कुछ नया भी नहीं करते
देखते भी नहीं हमारी तरफ
और अनदेखा भी नहीं करते
कुछ है जो टूट गया रिश्ते में
क्या है ये पता भी नहीं करते
रास्ते मुड़ के बिछड़ जाते जो
फिर कभी मिला भी नहीं करते-
सत्य
झांकता है
बच्चे की आंखों से
जब आश्चर्य और हर्ष से
देखता है वो बिना पूर्वाग्रह के
सत्य तुम्हारी आंखों से भी झांकता है
जब देखना घटित होता है और देखनेवाला नहीं होता
सत्य अपना दामन पकड़ाने से पहले तुम्हारा गिरेबां पकड़ता है-
गलती !
बेवफा होती है
इसलिए कभी मेरी नहीं होती
होती है किसी और की ही ---
नहीं दिखाती मुझे
भूल कर भी
अपने पास छुपाए
कीमती सबक
क्योंकि गलती कभी
मेरी नहीं होती !!-
तुम्हारी कसम खाने वाला
तुम्हारी हँसी छीन लेगा ---
संदेह के वृक्ष पर जब
कसम के ये फल लग रहे हों
समझना सुनिश्चित
कि रिश्तों पे घुन लग रहा है --
जहां प्रेम सच्चा
वहां कौन खाता है कसमें किसी की
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