jyotish   (jk(ज्योतिष))
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Joined 20 January 2020


Joined 20 January 2020
13 NOV 2021 AT 13:48

एक हकीकत है आज भी इस जमाने में ,
पता नहीं, क्या मजा आता है ? दर्द छुपाने में,
जिसके लिए हर पल का बस एहसास था,
उसने ही एहसास दिलाया इस जमाने में,

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21 OCT 2021 AT 13:01

आ मौत! अब तू ही गले लग जा,
इंतजार करना अब मेरे बस में नहीं।

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6 AUG 2021 AT 10:47

बिखरे हुए हर नज़्म ,
लिखते हैं टूटी कलमों से हम,

हम तन्हा हैं हर बज्म में देखो !

अब तो किसी के दिल में भी,
रहने के काबिल ना रहे हम।

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6 JUL 2021 AT 14:26

दुनियां की भीड़ में किसी ने धक्का दिया,
पता नहीं,वह कौन था,
पर जो भी था वो दिल के बहुत करीब था,
क्योंकि धक्के में सिर्फ आहट थी,
और वो भी मौन था।

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6 JUL 2021 AT 7:43


मुझे गुलाब देखे बहुत दिन हुए,
बागों में बहुत दिन से गया नहीं,
मुझे शराब पिए बहुत दिन हुए,
आज भी भरी पड़ी है जाम मेहखाने से
पर गया ही नहीं,

क्यों जाता ?
शराब पीने ?
क्या अपनी ही मायर गिराने ?
वो जाम पी थी जिसके लिए,
वो पल अब रहा ही नहीं।

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18 MAY 2021 AT 6:48

अब हर जनता वैश्या की तरह होगी, नेता बोली लगाएंगे,
जिसमें जितनी कसक होगी, सब आधी रात बिक जाएंगे।

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3 MAY 2021 AT 17:47

दिन पर दिन खाली होता जा रहा शहर ,
सिर्फ अब यहां मकान बचा रहा,
सबने समेट लिए अपने धंधे पानी,
पर राजनीति का दुकान बचा रहा ।

हर तरफ हाहाकार है सिर्फ,
बचा नहीं मुस्कान भी अब ,
बेशर्मी से सजाए थे ख्वाब ताजपोशी के,
कह दो उसे, बंद कर दे दुकान अब ।

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21 MAR 2021 AT 7:35

"ये मैं नहीं , मेरी कलम बोलती है,
जनता पर सरकारों की जुलम बोलती है,
आज भी कई लोग सोए हैं फुटपाथ पर ,
‘सब ठीक है’ सरकारें ये बेशर्म बोलती है ।"........

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21 MAR 2021 AT 7:32

ये मैं नहीं , मेरी कलम बोलती है,
जनता पर सरकारों की जुलम बोलती है,
आज भी कई लोग सोए हैं फुटपाथ पर ,
‘सब ठीक है’ सरकारें ये बेशर्म बोलती है ।

उठा धर्म के पताके कभी राष्ट्रवाद के नारे,
रोटी, कपड़ा, मकान ,बेरोजगारी, खत्म हो गए मुद्दे सारे,
जो भी है कुर्सी पर बैठे, आतुर हैं बांटने वतन को सारे,
याद रहे अब हवाएं भी नफरत वाली बहती है ,
लोकतंत्र भी अब ‘मिट्टी की घर’ सी ढहती है।

ये मैं नहीं , मेरी कलम बोलती है,
जनता पर सरकारों की जुलम बोलती है,
‘सब ठीक है’ सरकारें ये बेशर्म बोलती है।

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12 MAR 2021 AT 19:48

"देखो ! ये जो मिलकर चारो यार बैठे हैं,
वतन को बेचने वाले ठेकेदार बैठे हैं।"

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