Jyotindra Prakash  
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In search of a meaningful purpose..
Joined 14 February 2018


In search of a meaningful purpose..
Joined 14 February 2018
11 DEC 2019 AT 0:49

इस चकाचौंध रोशनी में गुम हो जाता हूँ
ये उजाले में मेरा अंधेरा कहीं खो जाता है
मुझे शौक नहीं है सिर्फ रौशनी की
मेरा अंधेरा भी तो मेरी पहचान बनाता है

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4 DEC 2019 AT 17:56

आ कर बैठो तो थोड़ा पास सही
कहनी है तुमसे बात कई
थाम के मेरे हाथ अगर सुन लो मेरे जज़्बात
हम यहीं बैठे रहें और कट जाए रात कई
आ कर बैठो तो थोड़ा पास सही
देख रही हो ये चाँद पटल पर
ये भी मुझसे जलता है
जब तुम आकर बाहों में
थोड़ा झेंप के हँसती हो
कहीं दूर कोई चकोर वियोग की आहें भरता है
तुम आ कर बैठो तो थोड़ा पास सही
कहनी है तुमसे बात कई........

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2 DEC 2019 AT 21:29

मैं एक नाव पे बैठा मुसाफिर
फिर मोहब्बत करने चला था
एक ज़मीन ने साथ छोड़ा
मैं नदी की ओर बहने चला था
मैं एक नाव पे बैठा मुसाफिर
फिर मोहब्बत करने चला था
किसे पता था मैं था मुसाफ़िर
कहाँ कोई अपना पाता
आज ज़मीन के छले
नदी भी हमसे गोते लगवाता
किसी ने भूखा रखा
तो क्यों हीं कोई प्यास बुझाता
मैं एक नाव पे बैठा मुसाफिर
फिर मोहब्बत करने चला था
एक ज़मीन ने साथ छोड़ा
मैं नदी की ओर बहने चला था।

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1 DEC 2019 AT 17:34

We live in a world that is so hypocritical that we are afraid of the same things that we search.

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21 NOV 2019 AT 17:52

Slowly I pick my pieces
Bend myself into the pit
And I pick my pieces
The pieces I carved out of me
To make a step for the imaginary things
I bled and bled
Held on to my shit
I cried at night
When the moon didn't see
Wanted to howl like a wounded wolf
But all i could do was whimper like a bitch
Picked up a brick and another brick and a brick
Made a fucking wall to protect myself
All i got was a prisoner within
Then I bend myself to pick a piece
The pieces I carved out of me
To make a step for the imaginary things

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16 NOV 2019 AT 17:28

तुम कहो तो आज थोड़ा रो लूँ क्या?
ये जो हृदय में पड़ी है घाव
आज अपने अश्कों के सैलाब से उसे धो लूँ क्या?
तुम कहो तो आज थोड़ा रो लूँ क्या?
कई अरसे बीत गए हैं
खुद को ढूंढते गैरों की बाहों में
कई ठोकरे खाई है सिरहाने पे
तुम अगर साथ दो
तुम्हारे बाहों में सो लूँ क्या?
तुम कहो तो आज थोड़ा रो लूँ क्या?

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2 NOV 2019 AT 10:33

When you fail in doing things that you want
You start doing things that you need

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31 OCT 2019 AT 8:08

वो चारदीवारी अब घर नहीं था
जहाँ प्रेम का मंजर नहीं था
इरादे उनके थे मौन से मौत देने की
बदकिस्मती थी की वो खंजर नहीं था

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22 OCT 2019 AT 13:50

ये क़ायनात क्या मिलाती नसीब से मुझे
ये खुद बदल जाती है मेरा नसीब देख के

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17 OCT 2019 AT 0:01

कभी साये में कभी शोर में
कभी मिलता हूँ किसी और में
इन पथरीली पगडंडियों में
कुछ कशमकश सी है अपने उसूलों में।

नहीं मिलती परछाई भी साथ में
कोई जंग छिड़ी है अपनेआप में
मेरे मैं में और मेरे जज़्बात में।

कभी साये में कभी शोर में
कभी मिलता हूँ किसी और में
इन पथरीली पगडंडियों में
कुछ कशमकश सी है अपने उसूलों में।

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