समय की रेत
अक्सर, हम सोचते हैं कि ज़िंदगी बहुत लंबी है... पर हर गुज़रता लम्हा हमें इस सच्चाई से वाकिफ कराता है कि 'वक्त किसी का नहीं होता, और जो बीत गया, वो लौटकर वापस नहीं आता।' बचपन में, हमने खुद से कई इरादे किए थे— 'जब बड़ी हो जाऊंगी, तो हर दर्द मिटा दूंगी...' लेकिन अब समझ आता है कि बड़ा होने का मतलब सिर्फ उम्र का बढ़ना नहीं है— इसमें ज़िम्मेदारियों का बोझ और अधूरे सपनों की खामोशी भी शामिल है। हम खुद को तसल्ली देते हैं, मगर कभी-कभी यह तसल्ली भी झूठी लगने लगती है। ऐसा लगता है कि हम वक़्त को धोखा दे रहे हैं, जबकि असल में, वक़्त हमें एहसास करा रहा होता है कि 'जैसी करनी वैसी भरनी...' अतीत में किए गए कर्म ही भविष्य की फसल तैयार करते हैं।
और सबसे ज़रूरी बात— बोलने से पहले सोचो। क्योंकि शब्द वापस नहीं आते, पर उनका असर पूरी ज़िंदगी के रिश्तों को बदल देता है। यह पोस्ट बस एक याद दिलाती है— कि वक़्त कभी नहीं रुकता, लेकिन हम ज़रूर ठहर सकते हैं— कुछ पल सोचने के लिए।-
* गुस्सा था... लेकिन आँसू आ गए *
कई बार ऐसा होता है — किसी बात पर गुस्सा आता है, पर हम बोल नहीं पाते।
जो कहना होता है, वो अंदर ही रह जाता है, क्योंकि अचानक आँखों में आँसू भर आते हैं।
हम लड़ना नहीं चाहते, बस अपनी बात रखना चाहते हैं।
पर जब कोई हमारे काम को समझे बिना तुलना करने लगे,
तो अंदर कहीं कुछ टूट सा जाता है।
उस टूटन से न गुस्सा ठीक से निकल पाता है, न दर्द - बस आँखें भीग जाती हैं।
ऐसे मौके पर अक्सर लोग सोचते हैं कि हम रो रहे हैं,
जबकि सच ये होता है — हम थक गए होते हैं।
हर बार खुद को साबित करना, हर बार चुप रहना, ये आसान नहीं होता।
ये आँसू कमज़ोरी नहीं हैं। ये उस भावना का हिस्सा हैं जो शब्दों से बड़ी होती है।
जब इंसान खुद की अहमियत जताना चाहता है
और सामने वाला सिर्फ तुलना करता है — तब आँसू, आवाज़ बन जाते हैं।
समझने की ज़रूरत है कि हर इंसान की एक सीमित सहनशक्ति होती है।
और जब वो टूटती है — तो कभी चिल्लाहट नहीं आती, सिर्फ़ ख़ामोशी और आँसू होते हैं।
अब वक़्त है कि हम ऐसे एहसासों को दबाना नहीं, समझना और स्वीकार करना सीखें।
क्योंकि जो महसूस करता है, वही इंसानियत से जुड़ा होता है।-
“Your class doesn't define your clarity. —your heart does.
“They treat your truth like a whisper; make your rise a roar.”
“Respect isn’t sold—it’s owned by those who never fold.”
“Being ‘small’ in status doesn’t mean your dreams are small.”
“They joked about you.
Let them. You’re writing the punchline now.”-
Sometimes, we forget how much our childhood sacrificed for the future we dreamed of. But not everyone gets to protect that past or fulfill its promises. Life’s unexpected turns leave scars, and some pains stay beyond our control.
Not every dream survives, and not every plan works out. But no matter how lost we feel, we must remember—our childhood deserved love, not just sacrifices.-
झूठी मुस्कानों से थक गई हूँ,
ज़ख्मों को हंसी में छुपाते-छुपाते।
ज़िंदगी भर जंग लड़ी मैंने,
पर फिर भी हर बार पीछे रह जाते।
सब कुछ दिया, फिर भी दुनिया बेईमान रही,
बचपन के ज़ख्म अब तक हैं वही।
वो मुझे बस एक नाम समझते हैं,
और मैं खुद को गिरने से बचाती रही।
अपनों को हाथ फैलाते देखा,
जबकि मैं चाहती थी सिर ऊँचा उठाना।
आत्म-सम्मान पैरों तले रौंद दिया,
फिर भी हर बार सब कुछ लुटाना।
अब और नहीं, ये चक्र यहीं तोड़ूंगी,
खुद को कमतर महसूस करना छोड़ूंगी।
चाहे कितनी भी टूटी रहूं,
अपनी क़ीमत अब खुद ही तय करूंगी|
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सत्य के दीप बुझ रहे हैं, अंधेरा छा रहा, हर रिश्ता आज यहाँ सौदों में तौला जा रहा।
ईमान बिक रहा है सिक्कों की आवाज़ में, सच को कुचला जा रहा झूठी उड़ान में।
जहाँ धर्म भी आज व्यापार बन गया, हर मंदिर-मस्जिद बाज़ार बन गया।
जहाँ न्याय भी अब बिकने लगा, गरीब का सच भी झुकने लगा।
कहते हैं कल्कि अवतार लेंगे, पाप के इस सागर से हमें तारेंगे।
पर जो सच के लिए अब ना रुके, वो ईश्वर क्या सच में आएंगे?
हर दिल में बस स्वार्थ की जंजीर है, प्यार भी अब एक लिखी तक़दीर है।
रिश्ते भी बनते, मतलब से जुड़ते, झूठ की राह पर हर मोड़ मुड़ते।
अब न सतयुग आएगा, न सत्य का वंश, कलयुग की यह आग होगी सबका अंत।
इंसानियत का दीप हमने खुद बुझाया, स्वार्थ, लोभ और लालच की आंधी में समाया।
जिस्म पर दाग किसी के हाथों के नहीं होते, कुछ घाव समाज की चुप्पी से भी गहरे होते।
जो अपने थे, कब पराए बन गए, रिश्तों की आड़ में दर्द दे गए।
अब गंगा की लहरें भी खामोश हैं, क्या पाप का रंग कभी धुल सकता है?
जो जख्म दिखाई नहीं देते, क्या वो कभी भर सकता है?-
ज़िंदगी के सफर में हमने बहुत कुछ सहा,
खुद को मिटा कर दूसरों के लिए जीया।
क़ुर्बानियां दी, हर दर्द को सीने से लगाया,
लेकिन आज उन्हीं लम्हों ने हमें ठुकराया।
ना वो लोग अपने रहे, ना मैं खुद को अपना मान सकी,
जिंदगी की इस हकीकत से मैं हार मान चुकी।
सांसों में भी अब कोई सुकून नहीं,
खुद से भी मिलने का जूनून नहीं।
शायद सहना ही सबसे बड़ी भूल थी,
खामोशी हमारी ही सबसे बड़ी भूल थी।
अब सीखा है, सहना नहीं है, कहना है,
खुद को भूलकर किसी और के लिए नहीं बहना है।
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