Jyoti Singh  
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mad for painting,music,writing
Joined 12 July 2017


mad for painting,music,writing
Joined 12 July 2017
11 MAY AT 10:21


इस धरती को यूॅ नर्क बनाते
किस स्वर्ग की इनको चाहत है
ये है रक्तबीज, नही मानव हैं
मानवता के भक्षक, ये दानव हैं
सत्य का जब तुमको भान नहीं
फिर अर्धसत्य तो इमान नही
किस किताब का अभिमान किया
जब खुदा की खुदाई का ज्ञान नही
अति का अंत तो निश्चित है
बस तुमको अभी पहचान नहीं

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26 APR AT 23:45

हो शक्ति संस्कार युक्त तो
वो ही राजा राम होगा
अभिमान शक्ति का जिसको है
वो राजा रावन होगा
जिस प्रजा को तर्क नहीं
दोष उसका भी राजा सा होगा
जिस प्रजा को हो ज्ञान धर्म का
समझो स्वर्ग वही होगा
कोख उजडती दूजी का
दर्द तुम्हे नही अगर होगा
कल तुम्हारी ओर भी
एक तीर निशाने पर होगा
पक्ष समझने होगे सारे
पर निष्पक्ष तुम्हे होना होगा
धरती के हिस्सेदारी लेने को
कोख मे उसकी खुद बोना होगा
ऊँचा खडा होने से पहले
अंकुरित तुम्हे भी तो होना होगा

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29 MAR AT 6:37

एक समय था आने को और एक समय था जाने को
निथर समय जब जायेगा, उथल पुथल कर जायेगा
ये मंथन विष को अमृत,अमृत को विष कर जायेगा
कलुषित , वीभत्स और,निर्मल ,अनुपम हो जायेगा
मानव दानव ,दानव मानव अंतर की ही माया है
उजियारा ,अंधकार का ,अंधकार उजियारे का साया है
मन को ही तो मथना था ,नींद से ही तो जगना था
मन भीतर बैठा चोर ,बांध संयम की पक्की डोर
खाली वरना हो जायेगा , घर बैठे लुट जायेगा

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28 MAR AT 23:16

समय ये कैसा आया जी
जन जन क्यों घबराया जी
चक्र समय का छाया जी
बना सुदर्शन माया जी
कर लो मंथन मन तन का
यही समय है परिवर्तन का
खोल के आँखे देखो जी
रौद्र बनी खुद अचला जी (पृथ्वी)
अभिव्यक्ती का सुख तो भोग लिया
अव्यक्त का मोल भी जानो जी ( मूल प्रकृति )
बाहर की दौड बहोत हुई
अंतर को भी जानो जी
सत्य असत्य का भेद है छोटा
बडा न उसको जानो जी

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21 FEB AT 10:45

कौन संग चल रहा कौन बिछड गया
तीन पैर से चलते -चलते बारह आँखे घूमती है
बिरला ही कोई बनता साथी जब उसका,
तब उसका ही वो ,माथा चूमती है

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21 FEB AT 9:49

तन्हाई भी सुनती है
बाहर के हर शोर से
सोहबत उसकी उतनी है
दरवाज़े सब बंद है लेकिन
पीछे की चौखट खुलती है

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7 OCT 2024 AT 21:41

अब हम भी दर्शक ,तुम भी दर्शक
कर्ता तो अब बस एक " जगकर्ता "है
दर्शन अभिलाषा तो फिर भी ठीक
गर भेद किया तो , फिर तू मूरख है
एक विकल्प बस एक " निर्णायक "होगा
तुम "पाण्डव "या फिर तुम " कौरव "होना
अहम ,स्वार्थ दो अंधे भाई ,ले डूबे सारी जगताई
उठा सुदर्शन चक्रवात सा,अब बारी इनकी आई
बस अब यहाँ तो "अहम घट" फूटनहारा
खाली अंजुलियों का बन "निस्वार्थ "सहारा
होनी -अनहोनी नही ,होना तो सब बस उससे
मूल और जीवन- मूल्य यही,अब तो मान इसे

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7 OCT 2024 AT 21:10

एक सत्य पूजनीय एक सत्य अपमानित था
एक मन्दिर के अन्दर एक सत्य बाहर था
एक ज्योति स्वरूप और मूर्त रूप था
एक निराकार कटु-कुरूप था
एक मन्दिर के अन्दर एक सत्य बाहर था

एक अनगिनत घन्ट नाद से उद्दघोषित
एक लाखों शब्द शान्त किए था
एक मन्दिर के अन्दर एक सत्य बाहर था

एक वांछित , मनोवांछित फल दायक
एक साक्षात त्यागपूर्ण जीवन था
एक मन्दिर के अन्दर एक सत्य बाहर था

एक सत्यम शिवम् सुन्दरम उच्चारित
एक प्रत्यक्ष प्रमाणित था
एक मन्दिर के अन्दर एक सत्य बाहर था

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7 OCT 2024 AT 21:05


राजा राम चन्द्र सा हो, और प्रजा अयोध्या जैसी
राजा और प्रजा मिल जायें तो हर दिन हो दिवाली सी
पिता के वचन निभाने को, देखो हो गये वो संन्यासी कोख दूजी के जाये लक्ष्मण हैं, ज्यों काया संग छाया सी
चौदह बरस राम रहे देखो, वन में बनकर वनवासी
भरत ने घर में वनवासी होकर देखो कैसी प्रीत निभा दी
राम गमन पर जिस प्रजा ने रो रो कर सरयू बहा दी
उसी प्रजा ने राम आगमन पर घर घर जोत जगा दी
जगत के पालन हारी ने तो तब ली मानुष काया थी
कैसे उन्हें पहचाना, फिर पूजा, ये प्रजा की ही माया थी

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4 OCT 2024 AT 8:19

जो मन को ज्योति दे गया
अंधियारो के बीच
बूंद बूंद घृत स्वास की डारी
मन की बाती सींच
एकाकी जीवन दे गया
उजियारो का दीप

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