बखान करूं या सलाम करूं
चल आज कुछ अल्फाज़,माँ के नाम करूं
आंखें मेरी तुझ-सी है ,
ये बात! लोग सरेआम कहते हैं ।
मेरे चेहरे पे धुंधला सा रूप है तेरा,
आइना भी अब बयान करता है।।
सूरत तो है !! बस अब सीरत तुझ-सा हो
संभाल सकूं अपनो को, ये आदत तुझ-सा हो ।
तेरे स्पर्श का सुकून , मेरे संग हमेशा हो
अब कोई हो अगर तो, वो बस तुझ जैसा हो।।-
लिखना हमें आता नहीं गर कुछ चुभ जाए तो लिख लिया करती हूं
देख महरूम मोहब्बत अब जवां होने को है,
हुस्न सज रहा है यार की नादानियों पर।
इश्क़ के आलम से ये आलम ज़रा अलग है,
मन झूम रहा है यार की शैतानियों पर।।
इल्म नहीं है शायद चांद को शब-ए-ख़ास की,
समझ कर हिज्र की रात, वो सोने को है।
इधर बदनाम सड़कों का डर भी सता रहा है,
अब बस हो जाए दीदार, की आंखे रोने को है।।-
ये जो तुम्हें, हीर से मोहब्बत है
तो केह क्यों नही देते....
के तुम्हें !! फ़िर से मोहब्बत है,
गर मिल जाएं फ़िर से वो काफ़िर तुम्हें
हां छुपाए बैठे इस तस्वीर से मोहब्बत है
अब केह क्यों नहीं देते.....
उसकी जुल्फों में छिपी
आंखों के तीर से मोहब्बत है
गर मिल जाए उससे अब पीर भी कोई
हां तुम्हें उस पीर से मोहब्बत है-
रतजगे से ख्याल लेकर आए हो,
अजी ना जी ना ;
हमें नींद बड़ी प्यारी है ।
अच्छा !! सपने को हकीकत बनाओगे,
अजी ना जी ना ;
फिर रहने दो, ये क़िस्मत हमारी है ।
ख़ूबसूरत होने का ख़्वाब दिखा रहे हो,
अजी ना जी ना ;
रंग हमारी, थोड़ी सावली है ।
ये जो हमें देख बेवजह मुस्कुराए जा रहे हो,
अजी अब थम भी जाओ
ये मीरा अपने श्याम की बावली है।-
ज़ुल्म की गद्दी पर बैठ
वो हमपे हुक्म चलाया करते थे
डर के उस बाज़ार में
हमें आंखों से धमकाया करते थे
हुआ इलहाम हमें तो
ख़ुद पर इल्ज़ाम लगाए बैठें हैं
ये कैसी तबीयत थी हमारी
जो उनपे अब जान गवाए बैठें हैं
सुन सुन के फरेबी की दास्तान
हम ख़ुद को छुपाए बैठें हैं
अब कैसे कहे !!!
उनकी एक झलक के खातिर
हम ख़ुद को सजाए बैठें हैं-
आज कुछ शरमाई सी हूं
इन बारिशों में, मुझे भिंगना जो है
हां थोड़ी सी घबराई भी हूं
इन हवाओं से, कुछ पूछना जो है
कल भी आई थी पर आंगन सुना था
आज आई है बूंदे , इन्हे छूना जो है
हां आज कुछ बेचैन सी हूं
इन नजारों में, आज खोना जो है-
बेवजह हमें यूं सहारा दे रहे हो
बेवजह हमें यूं सहारा दे रहे हो
हमदर्दी सच्ची है !!!!!
या फिर कोई इशारा दे रहे हो
माना कि! राह थके बैठें हैं
ज़माने को हम भूले बैठें हैं
हमसफ़र से लगते हो
अपनों में नाम हमारा दे रहे हो-
उम्मीद का परिंदा !! अब उड़ने को है ,
चल अब इसे कुछ हवा देतें हैं ।
जख्मों से लिपटा है ,पर दौड़ने को है ,
चल अब इसे कुछ दवा देतें हैं ।
कहीं खुदमें ना सिमटकर रह जाए,
चल अब इसे कुछ जगह देतें हैं ।
जाने किस अंजान राहों पर ठहरा है,
चल अब मंज़िल ना सही,
इसे कोई रास्ता देंतें हैं ।
उम्मीद का परिंदा अब बेघर सा है ,
चल अब इसे एक मकां देतें हैं ।।-
टूटे पत्ते !! फ़िर से संवर नहीं सकते
बिखर कर तो अब उन्हें सुखना हीं है
हवाओं के संग तो अब उन्हें टूटना हीं है
अपने आशियाने को फ़िर से भर नहीं सकते
चाहें भी तो वो राहों में ठहर नहीं सकते
टूटे पत्ते हैं !! फ़िर से संवर नहीं सकते-
सुबह की किरणों संग झूमने वाली वो एक चाहत
अपनी मुस्कुराहट से संवरने वाली वो एक चाहत
बिन मौसम बरसात में भींगने वाली वो एक चाहत
जहां से परे अपने ख्वाब सजाने वाली वो एक चाहत
अब फ़िर से सजाऊंगी मैं अपनी हर वो एक चाहत
अल्फाजों में ही सही पर मिलेगी मुझे कुछ तो राहत
कभी बिखरा था आज समेट लूं मैं हर वो एक चाहत-