सोचती हूं कि नयी शुरुआत करुंगी,, नये शब्द नये अल्फाज़ लिखुंगी।। ताज्जुब हैं मगर कलम रुसवा हो गई है,, कहती हैं- बेबाक लिखने वाली हिम्मत तेरी खो गई है।। पुराने अंदाज अपने फिर से समेट ले,, तू जिंदा है अभी ज़िन्दगी लिखना सीख ले।।
ज़िन्दगी बहुत ही खूबसूरत है, हर पल जीना और महसूस करना इन आती जाती सांसों को। यही तो असली आनंद है। जब मैं सोचने बैठती हूं कि ज़िन्दगी से वास्तव में चाहिए क्या? क्या इकठ्ठा करना है? और उसे कितने दिन बचा कर रख सकते हैं? तो फिर एक सवाल जेहन में आता है,,क्या स्वयं भी बचे रहेंगे? सबको पता है कि मृत्यु ही वास्तविक अन्त है। हम अपने जन्म से मृत्यु का सफर बस बेहतरीन बनाए। ताकि मृत्यु का आखिरी सफर हम घबराकर नहीं बल्कि सन्तुष्टि और आनन्द के साथ तय करें।।