Jyoti Jha   (Jyoti Jha)
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हिंदी प्रेम है❤️
सब होड़ में थे, अपनी बात कहने को
मैने उठाया कलम, और कविता लिख दी!
Joined 22 October 2017


हिंदी प्रेम है❤️
सब होड़ में थे, अपनी बात कहने को
मैने उठाया कलम, और कविता लिख दी!
Joined 22 October 2017
26 SEP 2024 AT 17:37

लौट आए घर, मुफलिसी वाले,
के दो रोटी, इक छत, एक सनम मिला
भटके रहे वो जिन्हे, जरूरत से ज्यादा
पर ख्वाहिशों से कम मिला!

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23 JAN 2023 AT 22:29

A heart that knows love will always be blissful!!

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23 JAN 2023 AT 22:10

Hold on to all that you can be!!
- Jyoti Jha
23-Jan-23











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13 NOV 2022 AT 13:02

कोई एक पल में जी लेता जीवन,
कभी पूरे जीवन में वो एक पल नही आता।
जिंदगी गुजरती रही साल दर साल,
पर कमबख्त, वो एक कल नहीं आता।

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3 AUG 2020 AT 13:39

भाई से छोटी बहन,
पूछती हैं क्या लाए हो,
राखी पर इस बार।
और खुश हो जाती हैं,
पाकर अपने पसंद का,
हंसी में मांगा हुआ उपहार।
और देख बड़े भाई को,
करती है अनुभव,
पिता जैसे प्रेम की!

और जिनके हैं भाई छोटे,
वो बहन सुलझाती हैं,
पसंद की राखी के लिए,
लड़ते भाइयों के झगड़े।
और कहती है, अभी नहीं
जब बड़े हो जाओगे ,
बिना उपहार के आने नहीं दूंगी।
और मन ही मन मां सी खुश होती,
कद और ज़िन्दगी में बढ़ते,
छोटे भाइयों को देखकर।

✍️ ज्योति झा





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25 JUN 2020 AT 16:38

नभ पसरा नाप को, मैंने पसारा मां का आंचल
नभ नाभि सा सिकुड़ गया,देख असीम मेरी मां का आंचल।

नयन नदियां समेट रखी, पोछे जाने पाप कितने,
गंगा भी देख नमन करे, ऐसा पावन मेरी मां का आंचल।

ख़ुशबू मां की आती है, छुअन भी थोड़ी मां की है,
मुझको तो मां जैसी लगे, कभी कभी मेरी मां का आंचल।

ये फूल, बहार, चंदा, तारे, लगते होंगे तुमको प्यारे,
मुझको तो सबसे प्रिय है, तकते रहना मेरी मां का आंचल।

निकल पड़ती हूं रोज़ घर से, फिर लौट आने को, के
दुनिया छोटी पड़ेगी मुझको, ना पड़ेगा छोटा मेरी मां का आंचल।

✍️ज्योति झा







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18 JUN 2020 AT 11:54

ख़ुदा से पूछना हैं,
क्या देखता तू भी
नीची दृष्टि से उसकी अोर,
होती है जिसकी बेटियां?

क्या मानता तू भी
अभागा, दारिद्र उसे
तूने दी है जिसको बेटियां?

क्या तू भी यही समझता,
नहीं फिरेंगे दिन उसके,
क्यूंकि पालनी है उसको बेटियां?

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3 JUN 2020 AT 21:35

एक उम्र निकली है जिसमें,
एक उम्र को सींच रही थी।
वक्त का तो आना जाना है,
मैं हूं वो जो बीत रही थी।।

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26 MAY 2020 AT 15:40

जो अब तक ना बोले,
तो अब चुप ही रहना।
आदत नहीं कुछ कानों को,
सो हक का कुछ ना कहना।

बदल गए हो, मतलबी हुए हो
ये सब इल्ज़ाम लगाएंगे।
तुम्हे चुप रहना चाहिए था,
सब मिलकर पाठ पढ़ाएंगे!

भले समेट के पीड़ अपनी,
आंखो से बारिश करना।
पर, जो अब तक ना बोले,
तो अब चुप ही रहना।

हज़ार गालियां उनकी,
आदत बतलाई जाएंगी।
उसपर एक जवाब, तुम पर
कितने सवाल उठाएंगी।

मूक तो तुम्हे रहना ही होगा,
खुद को ज़रा बधिर भी करना।
जो अब तक ना बोले,
तो अब चुप ही रहना।

✍️ज्योति झा












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8 MAY 2020 AT 0:25

सब कुछ करके नाम मेरे,
तुम हिस्सेदारी करते हो!
किसने किसको कितना समझा,
सारे हिसाब रखते हो!

✍️ज्योति झा














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