हिन्दू है राम, मुस्लिम है अल्लाह
सभी ओर , धर्मों का हल्ला
पर मासूमों का खून बहाना,
तेरा धर्म सिखलाता क्या?
दोस्त मेरे, अब मान भी जा, ये मजहब की दीवार गिरा ।
छूत-अछूत का भेद तू करता
ऊँच-नीच तू हरदम रटता
खून बहाकर देख ले अब तू,
कोई रंग अलग भी होता क्या?
दोस्त मेरे, अब मान भी जा, ये जाति की दीवार गिरा।
देश-देश में युद्ध तू करता
सीमा पे जाबा़ज है मरता
जो चला गया चिराग किसी घर का,
कभी लौट कर, आता क्या?
दोस्त मेरे, अब मान भी जा, ये सीमाओं की दीवार गिरा।
तू कहता , अबला है नारी
घर, चूल्हा-चौका, जिम्मेदारी
कह दे तू, क्या बिन नारी,
अस्तित्व तेरा, कभी फलता क्या?
दोस्त मेरे, अब मान भी जा, ये असमानता की दीवार गिरा।
तू धाक धरे है, अमीरों की
कहता, गरीब फौज है कीड़ों की
पर महलों में रहने वाले,
सोने-चाँदी से, भूख मिटाता क्या?
दोस्त मेरे, अब मान भी जा, ये पैसों की दीवार गिरा।
द्वेष भाव की दीवारों से
कोई घर , जन्नत बन पाता क्या?
दोस्त मेरे, अब मान भी जा, दीवार रहित संसार बना।
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