Jyoti Gupta   (Jyoti Gupta (Monika))
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Joined 22 May 2018


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Joined 22 May 2018
30 APR AT 21:39

किसी तख्तों-ताज या तारीफ़ों की ग़ुलाम नहीं हूँ मैं
मेरे चर्चाऐं तो खुले आम होती है
मेरे होने से ही रोशन हो जाता है हर समां
मुझे माप सके कोई उसकी ऐसी बिसात नहीं है ||

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27 APR AT 9:10

दिल जब बरगलाये तो चुप हो जाना चाहिए
ख़ामोशी के मंज़र में गुम हो जाना चाहिए||

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24 APR AT 1:55

कभी कभी लिखते लिखते इरादे बदल से जाते है
मन में चल रहे तूफ़ान कभी ठहर से जाते है

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24 APR AT 1:49

तुम इतना मुझे बताओ भगवन
मन की व्यथा सुलझाओगे कब तक
अंदर जो चल रहा कोहराम है
उसपर विराम लगाओगे कब तक

चिन्हित है हर दाग़ जख़्म के
उनपर मरहम लगाओगे कब तक
मेरे घर भी है एक मंदिर
अब तो बताओ घर आओगे कब तक ||

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23 APR AT 3:23

ये जो खनकती सी खन-खन है,
रंगों में हर रंग है
माँ की कलाई की याद दिलाती है
कि माँ की थप-थप में सार सुनाई देती है!
ये जो रस्ते के भईया है
लेकर घूमे जो चूड़ियाँ है
दुल्हन के श्रृंगार का अलंकार बनाई देते है
कि औरत के आने के आहट पहनाई देते है ||

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18 APR AT 9:28

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तुम तुम्हारी चाहते तुम्हारी आदतें
हमें सोने नहीं देती
तुम्हारा ख़ुद से बुदबुदाना
बेपरवाहीं से ख़ुद को संभालना
भूल जाना की वक़्त बदल रहा है
और खामोशियों से ख़ुद से मुस्कुराना
और वादा करना कि सदैव
तुम ऐसी ही रहोगी
झंझटो से मुक्त बनावटी दुनियाँ से परेह
तुम ढूंढ लोगी मुझे और गले लगा कर कहोगी
ज्योति को ज्योति ही संभाले जा रही है
अपने सपनों के संग बढ़ी जा रही है
कभी झुकना सीखा ही नहीं झोंको से
वो ख़ुद से ख़ुद में सवरती जा रही है ||
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18 APR AT 7:48

एक विचित्र सा आग है मुझमें
जो औरों से परेह करती है मुझे
संचारित करती रहती है और
कहती रहती है मुझसे कि
हवा दो सपनों को जो ख्वाबों
के बादलों में छुप गए है कही
निकालो ख़ुद को उस भ्रम से
कि मानने के बाद भी कुछ भी तेरा है नहीं
करो प्रगसित उस सफऱ को
जो जन्म लेते ही साथ जुड़ गया है
तुमसे तुम्हारी साँस बन गया है
और थकना ना - रुकना ना
क्यूंकि अब ये विराम तूफ़ान बन गया है ||

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14 APR AT 12:38

उसे सपनों में आते देख अच्छा लगता है
जीवन का हर रंग जैसे सच्चा लगता है

उसको पता ही नहीं मेरे दिल का हाल है क्या
दिल का बार-बार उसके लिए धड़कना अच्छा लगता है

मुस्कुराता है जब वो तो लगता है वक़्त ठहर गया हो
उसे एक टक-टकी निहारना अच्छा लगता है

कहानी कुछ ऐसी है कि उसे सब पता है
पर उसका कुछ ना कहना सच्चा लगता है

आँखों से आँखों का रिश्ता बन गया हो जैसे
कुछ ना कह कर भी सब कुछ कहना अच्छा लगता है||

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13 APR AT 22:26

तुम्हारे प्रेम में, मैं बिख़र के रह जाऊँ अगर
मुझे सँभालने का वादा करोगे क्या?
जानती हूँ हर रोज़ निहारा करते हो मुझे
मुझसे तुम कभी किनारा करोगे क्या?
यूँ तो दूरियां है तुम्हारे मेरे दरम्यान
मेरे ज़ज़्बातों का इशारा समझ लोगे क्या?
मैं तोड़ दूँ ग़र ये रस्में, ये कसमें
मुझे पास रखने का वादा करोगे क्या?
मैं तुम्हारी सारी खुशियां ले आ दूँ जहाँ की
मेरी ख़ुशी बनने का वादा करोगे क्या?
अच्छा सब भूल जाते है Nov का वो महीना
क्या फिर से अज़नबी बनने का वादा करोगे क्या?

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13 APR AT 21:44

ज़िन्दगी के दरख़्त से आज़ाद हो चली हूँ
कभी पूछ ना लेना कि तन्हाई चीज़ होती क्या?

दिल जैसा पागल अल्लड़ ना मिलेगा
कभी पूछ ना लेना कि दीवानगी चीज़ होती क्या?

हमने तो चाहत से भी चाहत ना की किसी की
कभी पूछ ना लेना मोह्हबत चीज़ होती क्या?

गाती-गुनगुनाती फिरती रहती हूँ जहाँ में
कभी पूछ ना लेना ख़ामोशी चीज़ होती क्या?

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