ख़ामोशी की आवाज यहां सुनता ही कौन है
सबको तो बस यहां खुद की सुनाने की होङ है
मैं बोलती तो माथा दरद हो जाता।
अगर मैं चुपचाप सुनती तो सबकुछ सरल हो जाता।।
मैं शान्ति से सुनती तो सबसे प्यारी,
अगर कुछ बोल दूं तो चल जाती रिश्तों पर कटारी।
मैं सब-कुछ समझाते-समझाते हारी,
क्योंकि हर बार बच जाती मुझे समझने की बारी।
मेरी खुद की पीङा-व्यथा को तुम कब समझोगे।
क्या एक चहकती-सी जान पत्थर बन जाएगी तब ही कुछ बोलोगे।।-
जब तुम्हारी पलकों को चूमा तो एक ख्वाब आया।
जब तुम्हारे अधरों को चूमा तो एक सौगात आया।।
जब तुम्हारी धङकनों को चूमा तो एक खुशनुमा एहसास आया।
जब तुम्हारी रुह को चूमा तो हम दोनों के जीवन में एक नया प्रकाश आया।।-
अंधेरा टिक नहीं सकता तुम्हारे संघर्ष की रौशनी के आगे।
तुम्हें कोई हरा नहीं सकता तुम्हारी जिद के आगे।-
सुनो, प्रिय!
इस कोरे कागज पर लिखूं भी तो क्या लिखूं?
मुझसे किए तुम्हारे वादे,
या मुझे दूर करने को तुम्हारी फरियादें?🤔🤔-
कोशिश तो हमने भी पुरजोर की
मगर वो हमें हासिल न हुआ।
कोशिश तो उसने भी कुछ की मगर वो
किसी और के जीवन का साथी हुआ।।
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जरा से फ़ासले रहने दो हम दोनों के दरमियां।
कहीं ये छिन न ले हमसे हमारी इश्क़ की मस्तियां।।-
यह जो इच्छा है वो कभी न खत्म हुई थी, न हुई है, और न ही होगी।
यह एक उम्मीद को जन्म देती है जो हमें एक गहरे दलदल में डाल देता है।
इसी दलदल के कारण हमें असंख्य तक़लिफों का सामना करना पङता है।-