किसी की DP चुपचाप सालों तक वही रहती है,
जैसे वक़्त भी उसके चेहरे को पहचानता हो।
तो कोई हर चौथे दिन नया चेहरा लाता है,
जैसे मन हर बार कुछ नया कहता हो।
कोई कहता है — ‘मैं जैसा हूँ, वैसा ही ठीक हूँ’,
तो कोई कहता है — ‘मैं हर दिन नया सीख हूँ’।
DP बस एक तस्वीर नहीं,
कभी सादगी की मिसाल, कभी खुद की तलाश है।
जो नहीं बदलते, वो भी कुछ कहते हैं,
जो बदलते हैं, वो भी कुछ सहते हैं।
सच तो ये है —
हर DP, एक अनकही कहानी की झलक है।-
शब्दों से भावों को जोड़ने वाली एक संवेदनशील लेखिका — 2020 से दिल की बातें काग़ज़... read more
हर दिन हो सुकून का,
हर रात में हो चैन की बात,
ना हो बम की कोई आवाज़,
ना हो डर, ना हो कोई आघात।
ना माँ के आँचल में आँसू हों,
ना बहनों की आँखों में डर,
हर बेटी निकले बेझिझक,
बिना किसी खौफ के होकर निडर।
ना तेज़ाब उछले चेहरे पर,
ना जले कोई मासूम जान,
हर लड़की हो फूल सी हँसती,
हर गली हो उसकी पहचान।
ना हो दंगे, ना हो दहशत,
ना मज़हब पर हो वार,
सब धर्म मिलें एक धागे में,
हर सीने में हो प्यार।
ना कोई सिंदूर उजड़े,
ना हो किसी का सुहाग बेहाल,
हर पत्नी के मन में हो विश्वास,
कि लौटेगा उसका लाल।
बच्चों की हँसी गूंजे फिर से,
ना छिने उनसे बचपन का हक़,
ना हो कोई विस्फोट कहीं,
ना हो दर्द की कोई शक्ल।
बस अमन रहे, चैन रहे,
हर कोना हो रौशन साथ,
ऐसे बीते ज़िंदगी का हर पल,
बेफिकर से दिन और रात।
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मैं सिरहाना हूँ, हाँ मात्र कपास ही सही,
पर शोक भरे चित की बची हुई आस भी कहीं।
ना जाने कितने अनगिनत अश्रुओं ने भिगोया है मुझे,
उनकी वेदना ने संजोया है मुझे।
जब कोई चुपचाप रोया अनेक रातें,
उनकी सिसकियों एवं मौन में बसी अनगिनत बातें।
मैं रहा उनके एकांत का साथी,
उनकी बिखरी टूटी सांसों का भी राखी।
जब हौले से मुझ पर कोई सिर रखता,
मन का बोझ मुझमें भरता।
मैं बिना बोले सब सुन जाता,
हर पीड़ा को रूई में गूंथ जाता।
कभी चीख नहीं, कभी आह नहीं,
बस अश्रु बहते — मैं गवाह सही।
माना कि मैं सजीव नहीं तुच्छ सा इक निर्जीव हूँ,
पर बन जाता कभी माँ कभी पिता, सच में मैं बड़ा ख़ुशनसीब हूँ।
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जब जब लिखने के लिए कलम उठाई है,
चित के उमड़ते हुए सागर को मिली गहराई है।
विचारों की श्रंखला निरंतर बहती आई है,
भावों की बूँदों से कविता सजाई है।
जो शब्द रहे मौन मन के किसी कोने में,
उन्होंने ही अब दिखा हिम्मत अपनी राह बनाई है।।
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बचपन में ज़ख्म भी जैसे कोई उत्सव लगते थे,
क्योंकि माँ की फूँक में दवा नहीं, दुआ हुआ करती थी —
दर्द रोता था, पर मन मुस्कुराता था।”-
“सच्चे सपूतों को सादर सलाम”
सबसे सुंदर सपूत हैं ये,
सदा देश से सच्चा प्यार करते हैं।
साहस से सजे सिर इनके,
सब संकटों से सामना करते हैं।
सच्चाई से संग चलते हैं,
शब्द भी संकोच करें इनकी शान कहने में।
जो भी आँख उठाएगा भारत की धरती पर,
हर बार मिलेगा उसे मुँहतोड़ जवाब —
क्योंकि सुरक्षा का संकल्प इन्होंने दृढ़ता से निभाया है।
सुरक्षित है सीमा, सुखी है समाज,
सैनिकों से संवरता है सारा भारतराज।
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नहर — सांझ और सवेरा की स्मृति
वो कल कल करता नहर का जल,
बचपन की स्मृतियों का था संबल।
ये स्मृतियाँ बचपन की,
जीवन की अनमोल धरोहर हैं,,
याद है आज भी वो बचपन का तराना,
काश लौट आए बीता पुराना ज़माना।
वो गाँव से कुछ ही दूर,
कल कल बहता नहर का जल,
सवेरे की पहली धूप में चमकता जल,
और सांझ में सुनहरी किरणों से सजता पल।
उसमें छलांग लगाते, कूदते नाचते,
मस्ती में चूर, नहीं जानते क्या होता छल,
समीप नहर के अनेक विशाल वृक्ष,
हवा के झोंकों से मदमस्त पल्लव एवं पर्ण।
बैठ उसकी छाया के नीचे, खोता था धीरज ये मन,
कभी नहर को निहारा करते हम हर क्षण।
सवेरे की ताजगी में था जीवन का जादू,
और सांझ की शांति में सुकून का इरादा।
तोड़ टहनी से शहतूत बुनते खेल,
वहीं सादा जीवन जानते हम, न था कोई इसका मेल।
चाह कर भी नहीं खरीद पायें फिर वो साँझ और स्वेर,
चाहे धरती पर उतर आयें धन के राजा कुबेर।
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काग़ज़ कोरा है बड़ा ही कमाल,
ना जाने कितने अश्रु लेता सम्भाल,
स्याही की कितनी बूँदे अपनी दुखी दास्ताँ इसे बताती,
मुख की मौन भावनायें सखा इसे है बनाती।।-