*अनकहे अहसास*
सर्दी की नरम धूप
और साल का बदलना
मानो एक लहर सी बह जाती
है ……
धीरे धीरे आगे आ के
अचानक बहुत तेज हो जाती है
यादें , लम्हे , मोहब्बत
जाने क्या क्या पीछे छूट जाता है
तारीख़ बदल जाती है पर अहसास वही रह जाता है ।
हर साल जब ये मौसम बदलता है
मैं जाने कितने सालो पीछे चली जाती हूँ
वैसे ही जैसे वो लहरे तेज होने के बाद नरम हो जाती है।
पुराने दोस्त…पुरानी तस्वीरें
पुरानी यादें…और पुराने अहसास
सब मानो अचानक एक तेज़ हवा के झोके से बह रहे हो,
ये दिसम्बर बड़ा बेदर्द है
दिलो में एक आग जला के
खुद बदल जाता है॥
ज्योति
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