सुना था कोई भी रिश्ता सांझा होता है
फिर हर बार मुझे ही क्यूं निभाना पड़ता है?
हर गम और खुशी मिलकर बांटने वाले थे
फिर हर बार गम ही मेरे हिस्से क्यूं आता है?
लम्हा लम्हा समेट कर यादें बनाती हूं मैं
फिर अगले ही पल सब बिखर क्यूं जाता है?
हम अपने वजूद को उनकी निगाहों में चाहते थे
फिर खुद के लिए ही खुद को क्यूं खोना पड़ता है?
तू इस सफर में सिर्फ मुसाफिर बनकर रहेगी "जयमाला"
वरना मंजिल के लिए हर बार मतलबी बनना पड़ता हैं।
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