कितनी ही बार ढूँढा मैंने तुम्हें!
हर बार एक परछाईं अंधेरे में खो गयी !!-
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सब खो दिया
तुम्हें खोने के बाद से 😕
ये क्या ढूँढ रहा हूं मैं आजकल ?
ये रतजगे किस लिए ?
ऐसे तो नहीं थे तुम
क्या ऐसा ही बनना चाहते थे ?
और भी कितने सवाल मन में गूँज रहे हैं
सब का उत्तर मौन रहना तो नहीं हो सकता ......-
उफ्फ जिन्हें मैं एक पल के लिए नहीं भूल पाया
उन्हें मैं एक बार भी याद नहीं आया ...-
तुम समझ सकते हो मुझे !
हमेशा से तुम्हें देखकर ऐसा ही महसूस किया है मैंने !!-
उसने तो कभी का आजाद कर दिया है मुझे !
ये मैं ही हूँ जो उसकी यादों में रहना चाहता हूं !!-