परंपरा, प्रतिष्ठा, अनुशासन।।
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हर रोज मैं
गुप्तगु करता हूँ
खुद से खुद ही,
एक तू ही तो है जिसे
देखकर मैं पहचानने लगा हूँ
उस चेहरे को,
जिसका न पता है नाम, और न
पता।।
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हमें खुशनसीबी के साथ साथ आत्मिक
आनंद की प्राप्ति होती है तथा ये संस्कार
हमसे हमारे बच्चों में विकसित होते हैं।।-
लिए मशाल
जन जागरण की है बात,
शब्द हमारे ऐसे हों,
जो करे सबके दिल पर राज,
प्रेम से सींचो इस बगिया को
होगा भंडार स्वस्थता औ विद्वता का,
परिवर्तन का भाव परस्पर,
जागृत होगी हर मुखमंडल,
हमारे पूर्वज टाल जाते तो,
नहीं होते हम इतने लायक
अब बारी हमारी है,
हम सबको मिलकर-
मेरा कि तुझपे कुर्बान
होने को जी चाहता
तेरी प्यारी सी मुस्कान पे
मरना नहीं
जीने को जी चाहता।।-
मिल जाए जहां
कदमों में होती खुशियां
वहां,
न होती पराए घर
जाने का डर,
न होती उसपर
कोई सितम,
होती है उनकी कमियां,
खूबियों में तब्दील,
रहती वो हमेशा खुश व,
जिन्दादिल।।-