Juhi Verma   (वैदेही)
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तुम्हारा परावर्तन हूँ मैं।
Joined 30 January 2017


तुम्हारा परावर्तन हूँ मैं।
Joined 30 January 2017
3 MAR 2022 AT 23:54

सिमटी हुई सी कहानी है, फिर वही बात पुरानी है
हमराही की तलाश है , चाहते उसकी बेमानी हैं...

उसी गली में हर बार आकर ठहर जाती हूँ...
जिंदगी की उलझनों की यही कहानी है...

प्रतीक्षा ही लिखी है इस जीवन मे शायद
उसकी वो घड़ी कुछ पुरानी है....

आकांक्षाओं की डोर खींचती है उसकी ओर
हक़ीक़त की चोट में हैरानी है...


जम गये हैं आंसू अब तो नयनों के कोरों में
तुमसे ये नई नई मुलाकात भी सूनी है...


इश्क़ में खो गए और वास्तव में सब भ्रम निकला
तुम्हारे झूठे वादे ही जख्म की निशानी है....

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22 FEB 2022 AT 19:09

रास्तों को मोड़ मिल गया था
मुझे जिंदगी का एक छोर मिल गया था

तुम्हारी बेबाकियों का आसरा था
लेकिन तुम्हे शायद कोई और मिल गया था.

चाहते बेमानी साबित हो जाती हैं हर बार
सन्नाटों को एक शोर मिल गया था

वक्तव्यों में उलझ सी गयी थी जिंदगी
मुझे तुम्हारे वादों का ठौर मिल गया था

अलहदा निकला हर साख का वाकया भी
रंज के निशान का एक दौर मिल गया था।

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3 FEB 2022 AT 15:29

ख्वाबों की हक़ीक़त में तू अपना है
जिंदगी की गहराइयों में पर तू एक सपना है

हासिल मंजिलों की बेरंग सी कहानी है
हसती हमारी बस एक परिकल्पना है

ये जो ठहराव में भी उलझने शामिल हैं
समय के चक्र की यही वेदना है

सिसकियों में मौन का समागम है
रास्तों की यही अधूरी संवेदना है

वास्तव में जिंदगी की तस्वीर धुँधली है
तेरा अक्स ही लेकिन मेरी सम्भावना है


मैं तो कहती हूँ कि हो जाये वो मेरा ही
अगर उसके हृदय की यही भावना है

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4 DEC 2021 AT 2:00

सुकून था जिंदगी में प्यार की दस्तक आ गयी
मोहब्बत में इनकार की भी वजहें आ गयी...

पथ प्रदर्शित करने का विचार था उस वक़्त
अब इस व्यापार की भी वजहें आ गयी...

तम हरने को दीपक जलाया था
हवा के पास भी अब वज़हें आ गयी...

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4 DEC 2021 AT 1:58



इस संसार मे तुमको अपना आसरा माना था
तुम्हे ही तो कश्ती का किनारा माना था..

धराशायी उम्मीदों की बिखरी हुई सी कहानी है
तुम्हे ही बस जीवन का सहारा माना था

उजालों ने भी छल किया है वक़्त बेवक़्त...
उन ऊंचाइयों को ही बस नज़ारा माना था


अधिकार की बातें वर्चस्व हीन हो गयी हैं
तुम्हारी उन बातों को खुशियो का इशारा माना था

गुंजाइश ही नहीं रह गयी है अब तो जरा
भविष्य के सपनों को हमारा माना था




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21 FEB 2017 AT 23:10

तुम्हारे ख्यालों में कुछ गम सी रहती हूँ...
इन आँखों की नमी में भीगी सी रहती हूँ
आफ़ताब से दूरियाँ बरक़रार हैं अभी तक
तभी तो आजकल इन अंधेरो में रहती हूँ।

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22 NOV 2021 AT 2:30

सब करके भी हार जाने की आदत है
मुझे हर बार रूसवा होने की आदत है

अरमान बिखरने थे ये पहले ही मालूम था
लेकिन मुझे तेरे इंतजार की आदत है

सम्भलना तो जैसे कभी सीखा ही नहीं
मुझे हर बार बिखर जाने की आदत है

भरोसा तो तुम पर हर बार हो जाता है
मुझे तेरे झूठे वादों की आदत है

कसक रह जाती है हर बार कहीं दिल मे
कि मुझे तुझसे इश्क़ करने की आदत है

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17 NOV 2021 AT 18:06

अघोषित सी कोई बात थी
समझने की बस बात थी...

दूरियाँ तय होनी थीं...तुमसे तुम तक की
वचनों में अभिलाषा थी, तुम्हारी एक झलक देख लेने की आशा थी...
नज़रो में संज्ञान था...हृदय लेकिन वीरान था....

कुछ घाव हो गए हैं हृदय के पटल पर
अवज्ञा का अब पैगाम है
आवश्यकता है उजालों की
बस यही जीवन का अरमान है

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14 NOV 2021 AT 1:07

आईने को ऐतबार है
कि मुझसे उससे प्यार है

जिंदगी टुकड़ो में बंट गयी है
कि दिल बहुत बेकरार है

समाधान चाहते थे जिंदगी से
कि अब तो ऐसे ही करार है

संभालना बिखरना भी सीख लिया है
कि अब बस सुकून का इंतजार है

वापसी का कोई मतलब नही है
कि तुम्हारे कृत्यों से दिल बेजार है

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12 NOV 2021 AT 0:39

वीरानियों में अपने आप को खड़ा पाती हूँ...
इन अंधेरों से कुछ आज भी डर सी जाती हूँ

हाथ थाम लेते हो जब तुम मेरा खुशियों से भर जाती हूँ
तुम्हारे साथ जीते जीते तुम पर ही मर जाती हूँ

तेरी यादों के तिलिस्म में खो सी जाती हूँ
तेरे इश्क़ के सुरूर में मैं संवर सी जाती हूँ

तेरे वास्ते तो मैं अब दुनिया से भी लड़ जाती हूँ
तुझे पाने की ख़्वाहिश में बिखर सी जाती हूँ


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