अक्सर ये बातें मैं खुद से पूछती हूं,
की क्यों मैं तेरी यादों में हमेशा खोई रहती हूं।-
सुनो अगर वक्त हो तो देख लेना पलट कर जब याद आए मेरी, मैं तुम्हारी तरह मुख नहीं मोरूंगी।
-
काश मैं लौट पाती उस हसीन पलो में जहां किताबों का बोझ नही था।
हर वो शाम याद दिलाती है ,मिट्टी में खेले हुए शामों की तब हमे ना एलर्जी होती थी ना इनफेक्सन।
आज प्लास्टिक की कश्ती होती पर उनमें कागज़ वाली बात कहा होती है।
काश मैं लौट पाती उस पल में जहां कल का चिंता नहीं था ,और हम आज को बेफिक्र होके जीते थे।
कभी देखते है किसी बच्चो को तो सोच कर जी लेती हूं,की कितना हसीन हुआ करता था बचपन।
आज की तरह हजारों रुपए तो नही मिलता था पर वो एक रूपए की बात कुछ और थी,जिससे पूरी दुकान खरीदने की चाहत थी।
-
Tumhe mere kamre me kuch nhi milegaa kitaabo ke siwaah ,
Agr kuch ghustakhiya ho to unse sikaayat kr lenaa..
-
Kabhi socha na tha tu itnaa khass hogaa
Dil ke pass hoga lekin phir bhi door hone ka ehsaas hoga !-
तुम शांति की खोज में घूमते रहना दिल्ली बम्बई।
मैं प्रयाग प्रयाग रटती रहूंगी ।
तुम गुफ्तगू करने के लिए बड़े बड़े रेस्टोरेंट का नाम लेते रहना ।
मैं संगम संगम बोलती रहूंगी।
_🌼-
तेरी बेरूखी ने कुछ इस तरह छीन ली है शरारते
मेरी।
और लोग समझते है हम समझदार बन गए है।
_🌼 🌼— % &-
If there was an opportunity to make my imagination come true, I will fulfilled your dream first.
_juhi🍂🌝-