वीरानियों से भरा है, दिल-ऐ-रगिस्ता अब
कभी बसंत में, फूल तो यहाँ भी खिले होंगे
अब चाहे दिशाएँ अलग है दोनों की,
लेकिन कभी तो, पूरव-पश्चिम भी मिले होंगे
मुझे ऐसे ही नही मिले तुम अनजाने में
खुदा ने दो पेज तो अपने लिए भी लिखें होंगे
ना करो कोशिश, मुझे समझने की एक-दिन में
खुदको लिखने में, मुझे भी कई महीने तो लगे होंगे
जिम्मेदारियों के सिरहाने पर, अब आती नही नींद मुझे
बचपन मे ख्वाब तो, मैंने भी बहुत बड़े-बड़े देखे होंगे
वक़्त ने अलग कर दिए, रास्ते और मंजिले सबकी
यकीं करो, कुछ हसीं दोस्त तो हमारे भी रहे होंगे।।
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