ग़र बिखर जाए लम्हें कहीं
तो समेट लेना
वो शिकायतें ख़ुद तक नहीं
मुझ तक रख लेना !-
ग़ुरुर किस बात का ज़नाब
ज़िक्र तो सिर्फ पन्नों पर है
और पन्ने ..
पन्ने फाड़े भी जा सकते है !🥀-
शायरों के शहर में एक शायर ऐसा भी होता है
जिसकी ज़िन्दगी में मोहब्बत का एक अंश भी
क्यूँ ना हो..
पर मोहब्बत पर वो सारे पन्ने लिख जाता है !-
वो मुझमे अपना वक़्त ढूंढता रहा..
और मैं अपना वक़्त उसमे गुज़ारती रही !
वो अपना इश्क़ मुझसे ज़ाहिर करता रहा..
और मैं उसके इश्क़ को अपनी बातों से टालती रही !-
ज़िन्दगी अपनी हम यूँ ही
लिखते लिखते गुज़ार दें
बस आप हमें अपना कीमती वक़्त दें
और हम अपने इन सारे पन्नों को
आपके नाम कर दें !-
तशवीरें काफ़ी देखी है उसकी बेरंग सी
उन बेरंग तशवीरों में रंग भरना चाहती हूँ मैं
ये मेरा इश्क़ नहीं तो और क्या है
जो उस नाउम्मीद दिल से
इश्क़ करना चाहती हूँ मैं !-
मिल जाये तो कोई बात हो
ना कोई मजहब हो, ना कोई जात हो
सब बस एक हों
फ़िर कोई बात हो !-
इन पन्नों पर तेरा ज़िक्र हो ही जाता है
नाराज़ हो भी जाऊं
फिर भी ये तुझसे बयां ना हो पाता है
फ़िक्र करने की आदत सी जो हो रखी है
कि यहाँ तेरे ना होने पर भी
तू अश्क़ बनकर बह ही जाता है !-