दिन के उजाले कब किसके मोहताज रहे हैं
ये रात ही है जो दर्द अकेलेपन को
महसूस महसूस करवाती हैं
जब अकेले बैठे हो तो
अपने को भी पड़ लिया करो।
#जानिब-
कभी चलते थे सिक्के जिनके नाम के बाज़ार में
आज कोई दो कौड़ी भी नहीं दे रहा है उनके नाम पे
कभी जिनकी दुकान चलती थी सिर्फ़ मसख़री पर
आज बाज़ार ख़ाली हो जाता है उनके आने के नाम पे
#जानिब-
जो आपको छोड़ गया वो आपका था ही नहीं
उसको मुड़ कर पीछे मत देखिये,
उठना बैठना किसी के भी साथ हो,
लेकिन उछलना खुद के दम पर ही चाहिए..-
हर दामन में है कुछ ना कुछ दाग
कुछ लोगो के फेके हुए हैं
या कुछ उनके ख़ुद के उड़ाये हुए हैं
निगाहे कब मानी है अपना कसूर ये जानिब
ये तो कुदरत के आज़माये हुए नुस्ख़े है
जानिब-
कमाई की परिभाषा सिर्फ़ धन से ही तय नहीं होती
तजुर्बा, रिश्ते, प्रेम सम्मान, बदनामी कुकर्म
दूसरो को देख कूड़ना ये सब के सब कमाई के ही रूप है-
मैं एक किरदार हूँ
जो पैसा नहीं रोटी खाता हूँ
मैं अपने इलाही बाप का बेटा हूँ
जिसको उसने तमाम
बरकतों का वसीयत दी है
मुझे क्या ख़रीदोगे
मैं तो खादिम हूँ
मालिक नहीं
बेचना खरीदना सिर्फ़
चोर या सौदागर का काम है
मैं मुतमईन हूँ ख़ुद से
जाओ कोई और
दरवाज़ा खटखटाओ
मुझे क्या ख़रीदेगा तेरा पैसा
जानिब-
मैं सुबको अच्छा कैसे लग सकता हूँ
जबकी मेरी अपनी एक सोच है
मुझे बंधुआ बनाने वाला मूर्ख है
क्युकी यक्ति बंधुआ हो सकता है
विचार कभी नही
जानिब-
हर पादरी बिशप अभिषिक्त नहीं होता है और
हर अभिषिक्त एक पादरी या बिशप हो ये भी जरूरी नही
इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए।-
धर्म के साथ राजनीति बहुत खतरनाक हो जाती है
शिक्षा का कम से कम इतना प्रभाव तो होना चाहिए कि
धार्मिक विषयों में हम मूर्खों को अपना प्रधान न समझें।
आपका व्यवहार ही आपको मर्द बनाता है
बाकी मूंछें तो चूहे और बिल्ली की भी होती हैं।
अज्ञानी जानिब
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