Jogendra Kumar   (✍🏻Dr.Jøgï🩺)
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Joined 11 November 2017


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Joined 11 November 2017
30 JAN 2022 AT 16:58

शेर पढ़ते हुए ये तुम ने कभी सोचा है
शेर कहते हुए मैं कितनी दफ़ा मरता हूँ— % &

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28 JAN 2022 AT 22:38

और कोई चारा न था और कोई सूरत न थी
उस के रहे हो के हम जिस से मोहब्बत न थी

इतने बड़े शहर में कोई हमारा न था
अपने सिवा आश्ना एक भी सूरत न थी

इस भरी दुनिया से वो चल दिया चुपके से यूँ
जैसे किसी को भी अब उस की ज़रूरत न थी

अब तो किसी बात पर कुछ नहीं होता हमें
आज से पहले कभी ऐसी तो हालत न थी

सब से छुपाते रहे दिल में दबाते रहे
तुम से कहें किस लिए ग़म था वो दौलत न थी

अपना तो जो कुछ भी था घर में पड़ा था सभी
थोड़ा बहुत छोड़ना चोर की आदत न थी

ऐसी कहानी का मैं आख़िरी किरदार था
जिस में कोई रस न था कोई भी औरत न थी

शेर तो कहते थे हम सच है ये 'अल्वी' मगर
तुम को सुनाते कभी इतनी भी फ़ुर्सत न थी

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27 JAN 2022 AT 23:39

अपने ही घर में हूँ मैं बेघर सा
हो गया है दिल भी पत्थर सा

देखता हूँ,सुनता हूँ खामोशी से
पड़ा रहता हूँ कोने में जर्जर सा

था कभी गुलज़ार यारों मैं भी
आज़ दिखता हूँ मैं खंडहर सा

गुजर रही ज़िंदगी जुगाड़ से अब
भटक रही भावनाएं दरबदर सा

जाने क्यों ये साँसे हैं बेताब सी
आँखें रहतीं हैं क्यों मुन्त्ज़र सा

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27 JAN 2022 AT 18:12

अज्ञात से सवाल का
अज्ञात सा जवाब है,
अज्ञात सी मेरी नींद में
अज्ञात सा इक ख़्वाब है,
अज्ञात से महासागर में
अज्ञात सा ही आब है,
मेरी हैसियत कुछ भी नहीं
कोई अज्ञात ही लाजवाब है...!!!
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20 JAN 2022 AT 22:54

कुछ तो तेरे मौसम ही मुझे रास कम आए

और कुछ मेरी मिट्टी में बग़ावत भी बहुत थी

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19 JAN 2022 AT 0:05

उदासियां,
बैचैनियां,
तन्हाईयां
बढ़ती जा रही है,
मेरी कलम
ग़ज़लें,
नज़्मे,
नये‌ शेर
लिखती जा रही है...!!!

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4 JAN 2022 AT 0:46

वो ढुंढता रहा मुझे तमाम उम्र
झूठ की चकाचौंध में,
और मैं सच के अंधेरे में
तमाम उम्र उसका इंतजार करता रहा....!!!

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21 DEC 2021 AT 22:04

ज़र्रा ज़र्रा काफ़िर हुए जा रहा हूं
दैर-ओ-हरम से जुदा हुए जा रहा हूं

सितारों की रोशनी में रूबरू हुआ खुद से
रफ़्ता रफ़्ता मैं खुद खुदा हुए जा रहा हूं...!!!

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26 NOV 2021 AT 19:33


चराग़ अपनी थकन की कोई सफ़ाई न दे
वो तीरगी है कि अब ख़्वाब तक दिखाई न दे

अगर यही तेरी दुनिया का हाल है मालिक
तो मेरी क़ैद भली है मुझे रिहाई न दे

मैं तमाम उम्र अँधेरों में काट सकता हूँ
मेरे दियों को मगर रौशनी पराई न दे

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19 OCT 2021 AT 22:26

हमेशा देर कर देता हूँ मैं
ज़रूरी बात कहनी हो कोई वा'दा निभाना हो
उसे आवाज़ देनी हो उसे वापस बुलाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
बदलते मौसमों की सैर में दिल को लगाना हो
किसी को याद रखना हो किसी को भूल जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं.....

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