ज्ञानती पुत्र भारत✳️   (भारत पाण्डेय)
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Joined 11 April 2019


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कलम थामे रहो....!

ये तलवार भी हैं,
और पतवार भी।

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मुझे प्रेम है...!
इतना की.....
जब आँखे बंद करता हूँ,
सामने पाता हूँ उसे।
एकांत मे बैठ के,
गुनगुनता हूँ उसे।
अंदर की कोलाहल मे भी,
ढुंढ पाता हूँ उसे।
दूर होके भी...
करीब इतना हूँ,
की हर पल महसूस कर पाता हूँ उसे।

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तुम क्या हो..?
एक माँस का टुकड़ा...?
एक जाति..?
भीड़ ..?
या एक वोट....?

जब तक तुम खुद को
एक माँस का टुकड़ा मानोगे,
लोग तुम्हें जातीय चादर उढ़ा के,
एक वोट की तरह प्रयोग करेंगे...!
और फिर हाथी के खाए हुए गन्ने की तरह,
निचोड़ के छोड़ देंगे...!!

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टूट नही सकतें,
झुक नहीं सकतें,
सिलसिला जारी रहेगा संघर्षों का,
थक भी जायें,
पर रुक नही सकतें।

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✍️ बातें✍️

बड़ी आसान है कहना,
कोई बात,
बात बात में लोग,
कर देते है बड़ी बात।
.......….................
(पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़े)
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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न ब्राह्मण रहे न क्षत्रिय कोई,
अब और न जाति पे वाद हो,
सब मिल-जुल करें राष्ट्र की सेवा,
वाणी में राष्ट्रवाद हो!

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युद्ध के उपरांत,
लिखीं जायेंगी गौरव गाथायें,
शौर्य की!
पर सिसकियों का हिसाब कौन देगा?
जीत-हार का हिसाब तो कर लेंगे,
जमीन से!
पर सुनीं गोद! उजड़ी मांगो को जबाब कौन देगा?

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शिव मुझको भी शिव कर दो,
दो धैर्य ध्यान का ज्ञान मुझे,
मुझमे ज्ञानपुंज भर दो,
शिव मुझको भी शिव कर दो!

न डिगूं कभी,
मैं अडिग रहूं,
पिलु बिपदा का गरल घूंट,
पर वाणी को सुधा कुंभ कर दो,
शिव मुझको भी शिव कर दो!

दो शांत चित्त मुझें भोला सा,
मुझे करुणामय शंकर कर दो,
कर सकूं राष्ट्र रक्षा मैं भी,
मुझमे रौद्र रुद्र सा तुम भर दो,
शिव मुझको भी शिव कर दो!

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✍️✍️कविता✍️✍️

शीर्षक~ कहानी प्रयाग की

(कविता अनुशीर्षक में पढ़े)
🙏🙏🙏🙏🙏

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शब्द सुना और जान लिया?
शब्दों! को जानों तो जानें,
ऊपर से कुछ नहीं दिखता,
अंदर से जानों तो जानें।

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