ज्ञानती पुत्र भारत✳️   (भारत पाण्डेय)
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Joined 11 April 2019


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लोकतंत्र या भीडतंत्र

लोकतंत्र का सपना था, सबको अधिकार मिलें,
न्याय की छांव तले, सब समान खिलें।
पर आज सड़कों पर, नारे ही गूंजते,
भीड़ के शोर में, मुद्दे सब डूबते।

वोट मिला जाति पर, धर्म के नाम पर,
सोच गई खो कहीं, बस भीड़ के काम पर।
नेता भी खुश हैं, भीड़ के सहारे,
सच की आवाज़ें, दब गई किनारे।

लोकतंत्र जहां था, विचारों का मेला,
वहां अब दिखता है, अंधा झुंड अकेला।
तर्क नहीं चलता, बस भावनाएँ राज करें,
भीड़ के हंगामे में, सपनों का काज मरें।

ओ नागरिक जागो, विवेक को हथियार बनाओ,
भीड़ की अंधी दौड़ में, मत खुद को बहाओ।
लोकतंत्र तभी बचेगा, जब चेतन मन जागे,
सत्य और न्याय की मशाल, हर दिल में लागे।

©️भारत पाण्डेय

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एक दिन मर के,
नदियों में मिल के गंगा हो जाना हैं,
इसी मिट्टी में मिल के भारत हो जाना हैं,
तो जीते- जी ऐसा काम नहीं करना की,
ये नदियां और ये मिट्टी तुम्हें अपनाने से अस्वीकार कर दे।

©️ भारत पाण्डेय

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मत पूछ उसके जाने से,
कितना खाली, कितना उदास हूँ मैं,
उसके होने से सब खुशियाँ हैं,
उसके बिन, बिन शंकर का कैलाश हूँ मैं।

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साल बदल गया है,
कि अब तुम भी बदल जाओ,
छोड़ो यह बेरुखी,
पास आओ लिपट जाओ।

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सुनो सच बताना......
मैं याद आता हूं तुम्हें.......?
जब ठंडी बारिश की बूंदे,
तुम्हारे नरम गालों को स्पर्श करती हैं,
या जब पूरी तरह से भी कर सराबोर हो जातीं हो,
मै याद आता हूं तुम्हें.......?

कभी किताबें पढ़ते-पढ़ते,
कोई छंद गुनगुनाते हुए,
प्रेम का जिक्र आने पर......,
मैं याद आता हूं तुम्हें.......?

जब रकीब तुम्हें बाहों में भर के,
संग जीने मरने की कसमें खातें हैं,
मैं याद आता हूं तुम्हें.....?

जब कभी मंदिर की सीढ़िया पर माथा टेकते हो,
या जब किसी पीपल के पेड़ से मन्नत के धागे बांधते हो,
मैं याद आता हूं तुम्हें. .....?

© भारत पाण्डेय

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कलम थामे रहो....!

ये तलवार भी हैं,
और पतवार भी।

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मुझे प्रेम है...!
इतना की.....
जब आँखे बंद करता हूँ,
सामने पाता हूँ उसे।
एकांत मे बैठ के,
गुनगुनता हूँ उसे।
अंदर की कोलाहल मे भी,
ढुंढ पाता हूँ उसे।
दूर होके भी...
करीब इतना हूँ,
की हर पल महसूस कर पाता हूँ उसे।

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तुम क्या हो..?
एक माँस का टुकड़ा...?
एक जाति..?
भीड़ ..?
या एक वोट....?

जब तक तुम खुद को
एक माँस का टुकड़ा मानोगे,
लोग तुम्हें जातीय चादर उढ़ा के,
एक वोट की तरह प्रयोग करेंगे...!
और फिर हाथी के खाए हुए गन्ने की तरह,
निचोड़ के छोड़ देंगे...!!

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टूट नही सकतें,
झुक नहीं सकतें,
सिलसिला जारी रहेगा संघर्षों का,
थक भी जायें,
पर रुक नही सकतें।

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✍️ बातें✍️

बड़ी आसान है कहना,
कोई बात,
बात बात में लोग,
कर देते है बड़ी बात।
.......….................
(पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़े)
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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