हर गली-कूचे से फलक़ तक परवाज़ बाकी है
ये बन्द कमरे मेरी दयार नहीं तय कर सकती-
اعجم انور
(Aazam)
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Iota a hidden chapter finds a place to unleash plethora of enigma.
Lost writer✍✍✍
Keen obser... read more
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Joined 10 December 2017
8 MAR 2021 AT 12:28
20 NOV 2020 AT 12:16
अपनी ऊंचाई पर क्यों न गर्व हो इमारत को
मद्दे मुक़ाबिल जो बनना है इसे इस ज़मीं की-
13 NOV 2020 AT 19:53
कितनी महत्वपूर्ण हो जाती है कश्ती
जब छूट जाता है साथ साहिल का वस्त बहर में
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7 OCT 2020 AT 19:56
कभी तुफानों ने, कभी लहरों के भंवर में
तो कभी शांत समंदर ने
इस बे-नाखुदा कश्ती को साहिल से मिलाने में
हर एक के किरदार मिले हैं-
27 AUG 2020 AT 20:07
एक ही तस्वीर थी उसकी जो कहीं खो गई ज़माने में
पर वो कातिब, आज भी देखा करता है उसे पन्नों में
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25 AUG 2020 AT 20:09
राही हूं, वाकिफ हूं इसके हर पहलू से
राहों को नहीं कोई निसबत मंजिल से
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23 AUG 2020 AT 19:18
लाज़मी है तुम्हारी यादों में डूब जाना
इसी के साथ हर शाम गुज़र जाती है-
19 AUG 2020 AT 22:53
Celebrate the journey and each uncertainty becomes embodiment of Joy.
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