डांटो, गुस्सा करो, या नफरत से
देखो मुझको,
मिटा दो या मोहलत दो चंद घड़ी की
ये सर झुकता है,सजदे में तेरे,
बस ख़ामोश न रहो, कुछ कहो।-
लेबर चौक पर बैठा हुआ मजदूर हूं।
..........FULL QUOTE
(IN CAPTION)-
मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चों का पेट वो भरता है।
जिम्मेदारी जिसके कान्धे पे हो उसे सूरज कहां अखरता है।
मूंह अंधेरे उठकर वो काम पे निकलता है।
सुबह से लेकर शाम तक कड़ी धुप में वो जलता है।
तिल तिल के लिए वो इन्सान पल पल के लिए मरता है।
पाई पाई जोड़कर परिवार का पेट वो भरता है।
धन्य है ऐसे वीर पुरुष
जिनके व्यवहार में फिर भी सरलता है।
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इक छोटी सी कहानी।
क्रिकेट जागृति का फेवरेट गेम है और आज जागृति बहुत खुश थी क्योंकि आज उसकी कोलेज टीम का मैंच था। जितिन जो हाल-फिलहाल में ही छुट्टी आया हुआ था,जागृति की सिफारिश पर उसे भी टीम में जगह मिल गयी। जागृति जितिन को कोलेज ले गयी मैच शुरू हुआ लेकिन कोलेज टीम का प्रदर्शन औसत था ऊपर से जितिन सस्ते पर आऊट हो गया। और उसकी खराब फील्डिंग के कारण दो कैच भी ड्रोप हो गये।कुल मिलाकर कोलेज टीम मैच हार गयी। जागृति बहुत गुस्से में थी, इसलिए जितिन ने चुपचाप उसकी स्कुटी में पीछे बैठने में ही भलाई समझी।स्कुटी की रफ्तार जागृति के गुस्से का स्तर बता रही थी। और जितिन पीछे बैठा हनुमान चालीसा जप रहा था..... To be Continued. (In Caption)-
क्या खूब कही किसी शख्स ने
आंखे खोल दो कि अपनों की पहचान कर सके।
बेवक्त पे भरोसे का इम्तिहान कर सके।
ऐसे रिश्ते में एक सारा जहां कर सके।
हो प्रीत की ऐसी जुगलबंदी दोस्तो,
बंद आंखों से भी भरोसा बेइंतहा कर सके।
और खुली आंखों से हाले ए दिल बयां कर सके।-
यु फिक्र को हवा में उड़ाना छोड़ दो,
नाजुक से फैफडो को जलाना छोड़ दो।
बड़ी मुद्दत से मिलती है जिंदगानी कीमती,
फिजुल उसको युंह मिटाना छोड़ दो।
जुड़े हैं तुमसे परिवार के लोग अनगिनत,
युं मंझधार में कुलदीपक बुझाना छोड़ दो।
लक्ष्यो के लिये कर दो दिन रात इक पहर,
छोड़ बुराई को जिंदगी को मोड़ दो।-
महफ़िल में ये किस्सा ए इश्क सरेआम हो गया।
था ही कब वो ख़ास जो अब आम हो गया।
वो झूम रहा था उनके ख्वाबो में इस कदर,
महखानो में बिन पिए ही उसका नाम हो गया।
भरोसे में साथ उनके चला वो बेखबर,
भरें बाजार में वो शख्स कत्लेआम हो गया।
पल दो पल के लिए जिंदगी में वो बना जो हमसफ़र,
उसकी गली में बुरी तरह से बदनाम हो गया।
मिन्नते बहुत की वो माने नहीं मगर,
डोली उठते ही उसकी,उस शख्स का भी इंतकाम हो गया।-
धैर्य और निष्ठा के साथ करना पड़ेगा परिश्रम,
आसान नहीं होता
तुच्छ से उच्च का सफ़र।-