जितेंन्द्र भारद्वाज   (being2jitendra)
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मैं हूँ ख़ामोश जहाँ,मुझको वहाँ से सुनिए
Joined 25 December 2016


मैं हूँ ख़ामोश जहाँ,मुझको वहाँ से सुनिए
Joined 25 December 2016

जो कभी एकांत में बैठकर,
किसी की स्मृति में
किसी के वियोग में
सिसक़-सिसक़ और
बिलख़-बिलख़ नहीं रोया
वह जीवन के ऐसे सुख से वंचित है।
जिस पर सैकड़ों #हँसी न्योछावर हैं।
❣️😊

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ऐसा भी होता है, हमारा मन चाहा शख्स
किसी और जगह रद्दी के भाऊ बिक रहा होता हैl

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प्रेम में छले गये लड़के/लड़की बन जाते है उपहास का केंद्र उनके प्रेम की असफलता को दी जाती है "कटने की संज्ञा" उसके हाल को जानने की कोशिश करती है केवल उदासी।

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अस्थिर इंसान ही,
दुनिया को स्थिर होने का सबक दे सकता है।

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हा मैं जिंदा हूं और जिंदा रहूंगा उस दिन तक,
जिस दिन सब ठीक हो जाएगा।

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जो कहानी कभी शुरू ही नही हुई थी,
वो अब खत्म हो चुकी है।
और सुनो तुम मेरी आखिरी मोहब्बत नहीं हो।

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प्रेम से भी मधुर होती है,
उस प्रेम की स्मृतियाँ।।

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जिस भाषा में हमने मां को,
पहली बार मां कहा था,
वो भाषा है हिंदी।

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किसी स्त्री के गाल पर आए बालों को अपनी उंगलियों से उसके कान के पीछे कर उसके माथे को चूमना और आलिंगन करना, संभोग से कही अधिक संवेदनशील और स्नेहयुक्त होता है।

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एकतरफा प्यार

खुद में एक विस्फोटक भाव है,जो हमे भीतर से तोड़ देता है, कहीं भी खुद को अकेले पाकर रोना ,उसे न कहकर, ईश्वर से उसे मांगना, अपनी मोह्हबत को अपने भीतर ही रख कर उसे चाहना, बिना किसी उम्मीद के चाहते रहना,खुद को उसके प्यार में जलाए रखना, फिर एक दिन उसके छोड़े जाने पर टूट कर बिखर जाना।

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