मेरे अरमानों भरी बरसात न जाने कब होगी
उन खास दोस्तों से मुलाकात न जाने कब होगी
मैं रोज ही दुआ करता हूँ उन सबसे मिलने की
पर मेरी ये दुआ कुबूल न जाने कब होगी
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जैसे तू है मुझसे और मैं हूं तुझसे
पेश ए खिदमत है ये फूल उस शख्स को
पसंद करती हैं ये आँखें जिसके अक्स को-
दूरियों ने नजदीकियों को और पास ला दिया है
उसे और भी ज्यादा याद करने का एहसास ला दिया है
क़रार था पास होने पर मगर अब बेकरार कर दिया है
बस झलक मिल जाए उसकी
बेताबी का कुछ इस कदर दौर ला दिया है-
तुम्हें देखा तो लगा
तुम्हें बहुत देखा
मगर बिछड़ने पर लगा
तुम्हें बहुत कम देखा-
उसकी आंखें हिरणी जैसी हैं
चाल शेरनी जैसी है
उसे देखा जाए उतना कम है
उसकी खूबसूरती चांद जैसी है-
कुछ चेहरे ग़ज़ल हुआ करते हैं
अंधेरे में आफताब हुआ करते हैं
दिल चाहता है उन्हें देखते ही रहें
वो इस कदर लाजवाब हुआ करते हैं-
लोग रखते हैं हर रोजा खुदा के नाम का
और हमने रखा है हर रोजा आपके नाम का
लोग चाहते हैं ईद पर दीदार खुदा का
और एक हम हैं जो चाहते हैं दीदार आपका-
हम उस शख्स से मुलाकात का इंतजार करते हैं
ख्वाबों, ख्यालों और तस्वीरों में ही दीदार करते हैं
कभी-कभी दिल चाहता है उससे मिल लिया जाए
मगर कदम चलते हैं रुकते हैं, चलकर फिर रुकते हैं
बस यहि सिलसिला हम बार बार हर बार करते हैं-
इस खूबसूरत सुबह में
एक खूबसूरत शख्स को
खूबसूरत भरा सलाम करते हैं
वो करेंगे स्वीकार इसे
खूबसूरत सी मुस्कान के साथ
बस यही कामना करते हैं-
जिए जा रहे हैं तुम्हारे दर्शन के बिना ये नैन
तुम्हें देखे बिना ये हैं बहुत बेचैन
गए हैं जब से आप हमे यूँ छोड़कर तन्हा
तब से हमे न सुकूं है और न ही चैन-