वो मिल गया मुझे, जो मुझमें ही गुम था ।
शिकायत थी उसे, हम कभी मिले ही नहीं ।।
सच की राह में दुश्वारियों का सबको गिला रहा
जिन्हें शिकायत थी, वो उस पर कभी चले ही नहीं ।।
परवरदिगार को कोसते हैं वो ही चंद लोग
जो जिंदगी में उसकी राह में कभी चले ही नहीं ।।
मेरी गलतियों का उनके पास पूरा हिसाब था
जो जिन्दगी में मुझसे कभी मिले ही नहीं।।
बैठोगे तन्हाई में तो तुम्हें सब याद आएगा
मोहब्बत भी है दरमियाँ, सिर्फ गिले ही नहीं।।
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© जितेंद्र नाथ-
रौनक
मेरे नए घर में कोई रौनक नहीं होती
इसके किसी कमरे में माँ नहीं सोती
पुराने घर की चौखट कितनी मुकद्दस थी
नई चौखट पर खड़ी अब माँ नहीं होती
© जितेन्द्र नाथ-
यूक्रेन
वो मुझको तन्हा रोता मिला
हर इंसान उसे सोता मिला
मैंने पूछा कि कौन हो तुम
वो बोला तुम्हारा वजूद हूँ मैं
तुम मिट जाओगे इस तरह
सिमट जाऊँगा मैं तुम्हारे बाद
क्यों बारूद से खेलते हो तुम
मेरे पास इसका जवाब न था
मेरे वजूद ने एक सांस छोड़ी
मैं समझ गया तुम्हारा उत्तर
तुम पर तुम्हारा अहम हावी है
तुम मुझे मिटाना चाहते हो
पर ये हो सकता है संभव तब
जब मिट जाओ तुम मुझसे पहले
© जितेन्द्र नाथ
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नक़ाब
सड़क पर आ गये हैं पैरोकार हिज़ाब के
कोने में दुबके हैं खिदमतगार किताब के
कितनी लाशों की सिंहासन को दरकार है
पूरा हिसाब किताब है पास में सरकार के
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बन गया हूँ पत्थर तो यूँ लगता है
ठहर गया हो जैसे दर्द मुझमें कोई...— % &-
नादानियों को तज़ुर्बे समझाने लगे हैं
यह समझ आने में हमको जमाने लगे हैं...
© जितेन्द्र नाथ— % &-
तेरे अंतर्मन में भी जाला निकल आया
बाहर उजला अंदर काला निकल आया
रो रो कर देता रहा मुझे जिनकी दुहाई
तू आज उनका सगेवाला निकल आया-
अंधेरों ने कुछ इस तरह से घेरा हमें
हमें सूरज जब मिला तो नाम पूछ बैठे
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ढोल ढपली नाद मंजीरे सब हैं तेरे आडंबर
थोड़ा रुक कर झांक ले भीतर सब तेरे अंदर-
छोटा होना अच्छा होता है
बच्चा गौण होता है
तो अच्छा होता है
शावक छोटा हो तो
भी बरबस अपनी तरफ
आकर्षित करता है।।
बड़े हो कर बदल जाते हैं
आदमी हो या शावक,
बड़प्पन अच्छा लगता है
जब विराट में हो लघुतम,
पर क्या ये संभव होता है।।
बड़ा होकर आकार मिलता है
क्या प्रेम साकार हो सकता है
प्रेम क्या शावक से है अपेक्षित
आदमी की तरह बड़े होने पर।।
शायद नहीं। खून लग जाता है
दोनों के मुख में,जो प्रेम नहीं है।।-