डर
न देख असाध्य, न मुड़, जब मन किंकर्तव्यविमूढ़,
विचलित क्षण चीत बाँधना, स्वरूप स्थायी शिव साधना।
मन में विश्वास न हो,
वह विष में वास समान
सोच,
ए डर, मुझे ललकार , हर डर हर हूंकार!
बारिश बिजली बाढ़ बवंडर , बन बहादुर मन बुनियाद, या
बन खोखला ख़ाली खंडर, डर के दीमक करें बर्बाद!
अड़, लड़, उस जड़ को पकड़,
या देख अपना पतन, पतझड़!
बोल,
ए डर, मुझे ललकार , हर डर हर हूंकार!
हार, गिर और टूट बिखर, फिर उठ बन कुछ और निखर।
गर त्रसन मन में सोएगा, तु स्वप्न में फिर रोएगा!
डर कर मझधार हार खड़ा?
कायर! हिम्मत की धार बढ़ा!
चिल्ला,
ए डर, मुझे ललकार , हर डर हर हूंकार!
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