जिज्ञासु(विष्णु)   (©जिज्ञासु “vishnu”)
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Joined 12 January 2019


Joined 12 January 2019

मैं देखता हूं दरीचों से सारी दुनियां
मैं कैद हूँ उसके दिल में, वो कैद है एक घर में।

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झूठ और धोखे से सारी दुनिया जीत ली उसने।
जो पीठ करके बैठी थी , वो उसकी मुहब्बत थी।।

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बगीचे की मिट्टी चिपक कर उसके साथ चल दी।
शायद मुद्दत के बाद कोई बच्चा खेलने आया था।।

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मानव विकास की प्रकिया में
स्त्री पशुत्व को त्याग कर
कई प्रकाश वर्ष आगे चल रही हैं।
लेकिन

पुरुष और पशुत्व अभी भी एक दूसरे के पर्याय बने हुए हैं।

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हादसों का क्या हैं!
मुस्कुराने से भी हो जाते हैं।

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होता हैं दिल भी बैंगनी, इश्क की आग मे झुलस कर।
फूंक-फूंक कर सिगरेट, उसने होंठों का रंग बदला हैं ।।

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जिसको को लोग मानते हैं,उसी को लोग मानते।

आपके पास दो लोग है ,उसी से चार लोग आते हैं।
क्या आप यह जानते हैं!

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मिट्टी से बना आदमी एक दिन मिट्टी हो जाता हैं।
फिर जंगलों से बने शहर एक दिन वापस जंगल होंगे?

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जब बेटियां घर से विदा होती हैं
तो पिताओं का चेहरा ठंडा ,सफेद और उदास
पड़ जाता हैं।

देखो!जैसे हिमगिरि के उत्तंग शिखरों को।

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एक तरफा प्रेम में,
ईश्वर आंखों से बहता हैं।

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