पतझड़ में
पत्ते कितने नाचते थिरकते अपना जीवन
छोड़ते हैं
जैसे वो इस प्रकृति के प्रथम सूफ़ी हो!-
जिज्ञासु(विष्णु)
(©जिज्ञासु “vishnu”)
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Joined 12 January 2019
YESTERDAY AT 16:28
9 MAR AT 23:38
उसने मुझे गले लगाया और पता नहीं क्या हो गया,
कोई मिला मुझे मां जैसा बस अब मैं बच्चा हो गया।-
13 JAN AT 23:56
रेत के टीलों ने चांदनी की रजाई ओढ़ी है।
जैसे एक पागल दीवाना, अब चैन से सोया है।।-
12 JAN AT 20:56
आज पौष की रात, चौदहवीं का चांद; और तुम!
हाए!किस्मत,हम आज मरे,कल पूनम का चांद।-
11 JAN AT 21:07
इस रोती हुई आंखों से कोई तो मुहब्बत करें,
जर्द गुलाबों से नमक पोछे; हाथों की नमी दे।-
3 JAN AT 21:49
जो भी उसे देखता हैं,हंसता-हंसता रो देता हैं।
खैर!उसे इश्क़ हुआ था, पागल होने से पहले।।-
22 DEC 2024 AT 16:05
उसका चलना,पायल का बजना,एक रागमाला है।
अब मैं मंदिर नहीं जाता,अब मेरा घर ही मंदिर है॥-