झुकी झुकी निगाह में जो बात कर गए,
लफ्ज़ बिन बोले ही हमें बर्बाद कर गए।-
समझ रही हूँ , देख रही हूँ ,सीख रही हूँ
अभी सफर की शुरुआत हुई है.....,
तेरी यादों का नशा कुछ यूँ छाया है,
हर रात दिल को बस तेरा ही ख़याल आया है।
तू मिल जाए ये दुआ हर रोज़ मांगता हूँ,
तेरे बिना ये दिल बेहद तन्हा,
बेवजह घबराया है।- Jîज्ञासा
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सफों में बसी है इक दुनिया पुरानी,
हर पन्ना समेटे है कहानियां अनजानी।
चाहे जो भी हो दर्द या फिर हंसी,
किताबें सिखाती हैं जीने की हर रवानी।- Jîज्ञासा-
दिल्ली की सर्दी
दिल्ली की सर्दी, क्या कहें जनाब,
हर सांस में बर्फ़, हर लम्हा अज़ाब।
धुंध में लिपटी गलियां, खामोश रातें,
जैसे हवा भी फुसफुसा के कुछ बातें।
शफ़क़ का रंग धुंधला, सूरज बेनूर,
हाथों में दस्ताने, होंठों पे सुरूर।
चाय की प्याली में गर्मी का एहसास,
हर रूह को राहत, हर दिल को प्यास।
सड़कों पे चाल सुस्त, क़दम ठिठकते,
लोग अपने लिबासों में ख़्वाब बुनते।
दिल्ली की सर्दी का रंग है अनोखा,
हर दिल में गर्मी, हर लब पे जोश का धोखा।
रात की चादर में सितारे खो जाएं,
दिल्ली की सर्दी में दिल भी सो जाएं।
फिर भी इस ठंड में है कुछ ख़ास,
दिल्ली की सर्द हवाएं, वाक़ई लाजवाब। -Jîज्ञासा
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अपने भीतर
मेरी आत्मा की गहराई में,
एक आवाज़ है, जो बोलती नहीं।
वह आवाज़ जो शांति की बातें करती,
और मुझे अपने भीतर ले जाती।
मेरे मन की झील में,
एक फूल खिलता है,
जिसकी खुशबू मुझे,
अपने आप में ले जाती।
मैं उस फूल को देखता हूँ,
जो मेरे भीतर खिलता है,
और मुझे याद दिलाता है,
कि मैं कौन हूँ।
मेरी आत्मा की गहराई में,
एक ज्योति जलती है,
जो मुझे रास्ता दिखाती है,
और मुझे अपने आप में ले जाती। -Jîज्ञासा
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बिछड़न
बिछड़न की धूल में खो जाते हैं रास्ते,
तेरी यादों के साथ रहते हैं आस्ते।
तेरी आँखों की गहराई में डूब जाता हूँ,
तेरी आवाज़ की गूंज में खो जाता हूँ।
बिछड़न की पीड़ा को सहना मुश्किल है,
तेरी अनुपस्थिति में जीना मुश्किल है।
तेरी यादों के साथ जीना आसान है,
लेकिन तेरी अनुपस्थिति में जीना कठिन है।
मेरी धड़कनें तेरी याद में धीमी हो जाती हैं,
मेरी साँसें तेरी अनुपस्थिति में कम हो जाती हैं।
बिछड़न की रात में तारे नहीं दिखते,
तेरी अनुपस्थिति में सूरज नहीं निकलता।
लेकिन फिर भी मैं तेरी याद में जीता हूँ,
तेरी आवाज़ में मेरा दिल धड़कता है। -Jîज्ञासा
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मजबूरियां होती हैं बयानात से बाहर
जो दिल पर गुजरती है सुनाया ना करेंगे
कह दे उनसे कोई कि जाफ़ाएं वो करें खूब
हम आँख की दौलत को बहाया ना करेंगे। Jîज्ञासा-
छेड़ देता है क्यों कोई
मेरे अरमानों की राख
राख के ढेर में
कोई चिराग ना हो
झुलस जाये ना कहीं
उंगलियां उसकी
कैसे रखूंगी ?
प्यार का मरहम उन पर -Jîज्ञासा-
निखरा था जब चांद का चेहरा
बिखरा था किरणों का सेहरा
गये थे जब गीत हवा ने
आये थे तुम नींद चुराने -Jîज्ञासा-
जलते रहें चलते रहें
जिंदगी के रास्ते बहुत संगीन है
यूं तो हमराह भी बहुत मिले
मगर
पल दो पल का साथ ही मिला
और बस खामोश ही
चलते रहें, चलते रहें
या फिर
रास्ते बदल बदल कर
दूसरे मोड़ों पर मिले
वो उस पार तो हम इस पार
फासले बढ़ते रहें, बढ़ते रहें
और हम भी उसी रूप में
ढ़लते रहें, ढ़लते रहें
पर अब तो बहुत थक गए हैं
मायूस हो गए हैं
तन्हाइयों से घबरा कर बस
घुटते रहें, घुटते रहें
दास्तां किससे कहें हम जाकर
बस यूं ही जलते रहें, जलते रहें
बस यूं ही चलते रहें। [-Jîज्ञासा ]
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