ए मेरे खुदा, जो खुद ही लिख लेती है,
जी किया पढ़ने को, बंध हो जाती है।
चाहता हूं खुद से भी कुछ लिख लूं,
केसे करूं, श्याही ही सुखा देती हो।
ना ताला है तुम पर ना कोई सीमा है,
ना चाबी है उसकी ना कोई अधिकार।
संभाल के रखा है सब कुछ पन्नों में,
मुझे भी संभाल लेते अपने हाथों से।- बिट्टू श्री दार्शनिक
15 JUN 2021 AT 11:54