जो घर खुशियों से था सूना उसे आबाद कर के रो पढ़े
हंसती खेलती जवानी को आज बर्बाद कर के रो पढ़े
खुदारा अपनी यादों पे पावंदिया लगाओ कुछ जान
आज जश्न की महफ़िल में आपको याद कर के रो पढ़े
अर्ज़ की मैंने जेब खाली है आज एक चाय पिला दे दोस्त
उसके तग़ाफ़ुल को जो देखा तो फरियाद कर के रो पढे
शैख ने कहा था किसी पे तक़दीर से ज़्यादा बोझ नहीं आता
जब हमने देख ली मुश्किलों की लिस्ट तो तादाद पे रो पढे
ख़ैर मौत के आने तक यही हाल रहना है काविश
कभी मुर्दाबाद पे हंसे कभी ज़िंदाबाद पे रो पढे
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