Jibran Khan Hanfi   (काविश तंहा)
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Joined 15 December 2018


Joined 15 December 2018
3 JUN 2022 AT 3:41

जो घर खुशियों से था सूना उसे आबाद कर के रो पढ़े
हंसती खेलती जवानी को आज बर्बाद कर के रो पढ़े

खुदारा अपनी यादों पे पावंदिया लगाओ कुछ जान
आज जश्न की महफ़िल में आपको याद कर के रो पढ़े

अर्ज़ की मैंने जेब खाली है आज एक चाय पिला दे दोस्त
उसके तग़ाफ़ुल को जो देखा तो फरियाद कर के रो पढे

शैख ने कहा था किसी पे तक़दीर से ज़्यादा बोझ नहीं आता
जब हमने देख ली मुश्किलों की लिस्ट तो तादाद पे रो पढे

ख़ैर मौत के आने तक यही हाल रहना है काविश
कभी मुर्दाबाद पे हंसे कभी ज़िंदाबाद पे रो पढे

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2 JUN 2022 AT 9:30

खुदा कभी उरूज न बख्शे कमीनो को
ये जल्दबाज़ हांथो में चिंगारी उठा लेंगे

जो दी है खुदा ने दी है आबरू को बलन्दी
क्या आदा जहां से इज़्ज़त हमारी उठा लेंगे

तन्हाई को मसकन बना के उसी में रहूंगा
मिल गई कहीं पड़ी तो ख़ुमारी उठा लेंगे

मैं दर्द से जब शबो रोज़ चीखने लगा काविश
आई सदा वक़्त आने पर ये बीमारी उठा लेंगे

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25 MAY 2022 AT 9:44

हुस्ने जाना का हुआ असर इस बार ऐसा
के तीरे हुस्न गुज़र गया दिल के पार ऐसा

लज़्ज़ते दुनियां हेंच लगने लगी इक पल में
क्या करूँ दे गई मज़ा निगाहे यार ऐसा

वो कहे तो दुं दुश्मन को भी जां हंसते हुए
है एक अज़ीज़ दोस्त पे मुझे ऐतबार ऐसा

मैं मुहब्बत का ताजिर हूँ पर मुझे नफा मयस्सर नही
रोज़ ख़सारा ही होता है कर लिया कारोबार ऐसा

ये गुलामे खाक़ पाए उवैसे मुस्तफा है लोगों
मेरे कुतबे पे लिखना बना कर मेरा मज़ार ऐसा

हक़ मुर्शिद 🙏

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3 APR 2021 AT 23:13

उसने भी हालते गज़ब में दे दी माचिस
फिर खुद तड़प कर बोला हाय ये क्या करा पागल

खुद की ज़ात को तमाशा बना कर
खुद ही बोला अब तो मुस्करा पागल

लोग खाक़ समझते रहे लेकिन आसमां भी रोया
जिस रोज़ वो बेबस मरा पागल

साहिबे जुनू से तो हिकमत भी खौफ खाती है
कितनी लज़्ज़त है कोई होके तो देखे ज़रा पागल

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27 MAR 2021 AT 10:23

बदलते हुए तिरे तेवर देखे नहीं जाते
ग़म से दोस्त बेख़बर देखे नहीं जाते

एक हम हैं जो अपने बेगाने के गम ख्वार हैं
एक वो सख्त जां जिनसे फूटे सर देखे नहीं जाते

रूह की टीसें हर दम दिल के दौरे का खौफ दिलाती हैं
मगर कमीने दिल से ये खौफो खतर देखे नहीं जाते

जब से दिल मुशरिक हुआ है ग़ैरों की मुहब्बत का
सो अब हमसे किसी के भी ऐबो हुनर देखे नहीं जाते

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21 MAR 2021 AT 1:02

मरना बी दस्तरस में नही ज़िंदगी भी जीती नही जीने की तरहा

कोई एक लम्हा ही जी कर दिखाए मुझ बेगैरत कमीने की तरहा

🤐

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20 MAR 2021 AT 11:15

यहां फतवे लग जाते हैं यहां सर भी उड़ा दिए जाते हैं
ये बस्ती अब्दे ख़िरद की है यहां खुलूस की बात मत कर

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16 FEB 2021 AT 0:30

मुम्किन है मुनाफ़िक़ भी कर ले बातें महब्बत की

लेकिन दिल उसका गलाज़त से खाली नही होगा

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15 FEB 2021 AT 0:03

आग खाम धुआं वहम
नमाज़े गैर की अज़ां वहम

वो मेरी सच्ची महब्बत ये
मेरे सच्चे यार यहां वहां वहम

रौनके महफ़िल हूं मैं अपने दोस्तों की
आज हुआ मुझपे ये अयां वहम

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10 JUN 2020 AT 0:41

मैंने पाले थे ज़ख्मे हिज्रे यार बड़े नाज़ो से

मेरीं बद बख्तियो में ये बद बख्ती सबसे बड़ी थी

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