कई आते हैं गाँव से सहर हालत बदलने अपने,
ये भी 1999 में ऐसे ही रायपुर आए थे,
पत्थर उठाने से शुरुवात की जिसने,
जो पैदल चलते थे १०-१० किलोमिटर,
आज हमे कार में वो घुमाते हैं,
४५० का रूम रेंट, ५० का बिजली बिल दे कर,
३०० में गुजारा करने वाले मेरे पापा,
अब हमे पाँच सितारा होटल में रुकवाते है,
ख़ुद भूखे रहे महीने में कई कई बार जो,
वो आज बड़े बड़े रेस्टोरेंट में ले जाते है,
जो साइकिल के लिए तरसते थे कभी ख़ुद,
वो आज कार में मुझे ट्यूशन भिजवाते है,
कभी ख़ुद समोसा बना कर बेचने वाले,
आज ग़रीबों में लोखों लुटाते है,
४०-५० वाले कपड़े जो पहनते थे कभी,
वो हमे मॉल से शॉपिंग कराते है,
जिनका धर्म, कर्म सब परिवार ही है,
जानते हो ना आप सब वो मेरे पापा कहलाते है,
मेरे पापा ने हारा है खुदको, हम सब की ख़ातिर,
देखो वो जीता हुआ इंसान बैठा है सामने सबके,
आज हम सब उनके सामने अपना सिस नमाते है ।
Thank You Papa🙏🏻
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