दुनिया को ज़मीन से नापों तो सरहदें मिलेंगी...
और अगर प्रेम से नापों तो आत्मीयता...— % &-
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I tend to write occasionally (depends mostly upon my mood) so yearly subscription has no use for me.
Thank you. 💖😊— % &-
यह जो घण्टों अपने आप को आईने में सँवारती हूँ
सच कहूँ, अपने बिम्ब में तुम्हारी छवि सजाती हूँ
अथाह प्रेम से ग्रसित तन-मन को
आप देख इतराती हूँ
वियोग के क्षणों में बतलाओ किस
सुखस्वप्न को विलासी हूँ
अपलक निहारूँ, निःशब्द पुकारूँ
तुम्हारे आलिंगन से आवृत होकर
मन ही मन सकुचाई हूँ...
स्वर्णिम संगम के सुमधुर संगीत से
अलंकृत तन को निहारती हूँ
पोर-पोर में समाये तुम,
आईने में केवल तुम्हें
और तुम्हें ही तो
सदा निहारती हूँ...-
पेट की भूख
हिन्दू की खीर और मुसलमान की सेवई में फर्क करना
कहाँ जानती है,
धर्म दरअसल भरे पेट खुशकिस्मतों के फुर्सत का सामान है ।-
तुम्हारी तलाश कभी खत्म नहीं हुई...
तुम मिले तो सही लेकिन
तुम्हें पाने की आरज़ू कभी मुक़म्मल न हुई-
तेरे आदम को सुकूँ क्यूँ नहीं है,
ये जो झाँकता है ऊपर से तजस्सूस लिए
तेरी हक़ीक़त क्या, जुस्तजू क्या है-
मनुष्य का व्यक्तित्व एक खुली सड़क है, जिसे हर मोड़ पर एक एकांत चाहिए,,,,
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ये सारी जंग..
ये जद्दोजहद ख़ुद को साबित करने की..
एक रोज़ हँस पड़ेगी तुम्हारे सामने आकर
और अंततः मुझे लौटना होगा
उस डाली के नीचे
जिसकी झुरमुटों से बहते चाँद को हम दोनों ने
बारी-बारी से देखा था..
सावन की फुहार के पास
दो दिल गिरवी है,
अबकी बार आओ तो
भीगने की आरज़ू भी साथ लाना।-
समर अभी शेष है..
व्यर्थताओं की विषम ग्लानि से परे
सुख-स्वप्नों का प्रासाद है।
पथ की दुर्गमताओं से क्या भय
जब मन में विजय की अभिलाष है
चलते चले जाने की क्लान्ति पर
लक्ष्य भेदने का प्रवल उत्साह है।
रोता क्यूँ अपने भाग्य पर जब
तूने चुना ये मार्ग है
रास्ते की कठिनाइयों से
होता वीर का चुनाव है।
तू रुक मत, हवा दे
अपने भीतर प्रज्जवलित ज्वाला को
अपने अंदर की आँधियों से लड़
खोज आन भोर-प्रकाश को
युध्द में गिरते हैं सुसज्जित योद्धा ही
जो रण में उतरे ही नहीं उन्हें क्या भय पराजय को।
अस्त्र-शस्त्र है सभी निमित्तमात्र, साहस के बल पर
होती सूरमाओं की पतन है
धीरज को सारथी बना, क्या अवकाश है अब विकल्प को?
तू उठ, फिर चल दे
अपने व्यक्तित्व से रच
अपना नया इतिहास तू।-