समर अभी शेष है..
व्यर्थताओं की विषम ग्लानि से परे
सुख-स्वप्नों का प्रासाद है।
पथ की दुर्गमताओं से क्या भय
जब मन में विजय की अभिलाष है
चलते चले जाने की क्लान्ति पर
लक्ष्य भेदने का प्रवल उत्साह है।
रोता क्यूँ अपने भाग्य पर जब
तूने चुना ये मार्ग है
रास्ते की कठिनाइयों से
होता वीर का चुनाव है।
तू रुक मत, हवा दे
अपने भीतर प्रज्जवलित ज्वाला को
अपने अंदर की आँधियों से लड़
खोज आन भोर-प्रकाश को
युध्द में गिरते हैं सुसज्जित योद्धा ही
जो रण में उतरे ही नहीं उन्हें क्या भय पराजय को।
अस्त्र-शस्त्र है सभी निमित्तमात्र, साहस के बल पर
होती सूरमाओं की पतन है
धीरज को सारथी बना, क्या अवकाश है अब विकल्प को?
तू उठ, फिर चल दे
अपने व्यक्तित्व से रच
अपना नया इतिहास तू।
-