उफ्फ ये तेरा इश्क
तुम्हारा हर बार मिलने की ख्वाहिश लेकर आना,
और निराश होकर मुझसे यूं बिना मिले ही चले जाना।
कभी धमकाया तो कभी ब्लैकमेल किया
सारे पैंतरे आजमाए तुमने मुझे डराने के।
मिलने के लिए फिर भी तैयार न कर पाए,
निराश होकर आखिरकार तुम अपने शहर गए।
अपने शहर जाकर तुम्हारा फिर यूं ताने मरना,
और मेरी गलती होते हुए भी तुमसे मेरा
अकड़ कर बात करना,
की अब तो साथ छोड़ोगे अब तो बात नही करोगे,
पर न जाने वो किस तरह का इश्क है तुम्हारा,
जो हर बार मेरी गलती को अपनी गलती
बता कर उसे न दोहराने का वादा करते
उफ्फ ये तेरा अनोखा इश्क.....
जो आज तक मेरी समझ से परे रहा,
जिसे समझना चाहूं तो भी न समझ पाऊं,
क्योंकि वो हर पहलू पर एक नए सिरे से सामने आया है।।
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