Jaya singh Shrinet  
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Joined 22 August 2019


Joined 22 August 2019
15 OCT 2021 AT 0:23

अक्षर धाम की शाम
खास कुछ ऐसी
जिसमे एहसास है प्यार की

नाम लेते ही अक्षरधाम की
याद आती है अनेक स्मृतियाँ
जिसे मैने हमेशा अपने खूबसूरत
दिनों में से एक बताया है
अपने दिल के बीचों बीच उस याद को
लगाया है......



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15 SEP 2021 AT 0:08

कपड़े बदलो देश बदलेगा...




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4 SEP 2021 AT 23:56

अकल्पनीय था,
मेरे लिए तुम्हें खोना।
अविस्मरणीय है वह दिन
जिस दिन तुम्हें खोया!!

संपूर्ण जीवन तो थी तुम,
मेरे लिए मेरी आदर्श थी तुम ।

सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक साथ तुम्हारा होता था।
उठा देता गर मुझ पर कोई ऊँगली ,
जवाब तुम्हारा करारा होता था ।
पूछता भैया मुझसे जब सबसे ज्यादा किससे प्यार करती हो??
मेरी जुबां पर सिर्फ और सिर्फ नाम तुम्हारा होता था


साथ रहकर तुम्हारे भूल जाती थी सब रिश्तों को
मां बाप भाई इन फरिश्तों को ।
मेरा तुम्हारा रिश्ता अद्भुत और अद्वितीय था
शायद इसलिए यह रिश्ता ईश्वर को ना कबूल था



Jaya singh

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22 JUL 2021 AT 2:20

मन चिंतित है या भयभीत
भयभीत भी है तो क्यों
वो शहर मेरा नही था
जीवन के बस तीन वर्ष ही
तो बिताए हैं,मैंने वहाँ
शिक्षा के साथ बस थोड़े
सगे संबंधी ,थोड़े रिश्ते ही तो
कमाए हैं मैंने वहाँ,

उस शहर से सीखा है बहुत कुछ
पर उससे कीमती जो पाया
वो है वहाँ की यादें पर....
बस यादें ही तो है ,
साथ तो वो भी आयेंगी ना?
ओह्ह! तो वो यादें जिनके साथ है
वो दूर हो जायेंगे......
मिलेंगे फिर कभी सालों में
पर हमेशा रहेंगे मेरे ख्यालों में!!

पर फिर भी.......

अब जब अपने शहर
लौटने की बात होती है
तो समझ नही आता ...
मन चिंतित है या भयभीत
भयभीत है भी तो क्यों?

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22 JUN 2021 AT 1:39

कितना अजीब है ना....
अधिकार सबको पता है
पर कर्तव्य किसी को नही।

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18 JUN 2021 AT 1:02

अपनो की कोई बात अच्छी ना लगे उसे चुप रहकर सुनते जाना

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13 MAY 2021 AT 14:04

औलाद ही वह स्नेह की धुरी है जो आदमी औरत के पहियों को साध कर तन के दल दल से पर ले जाती है नहीं तो हर औरत वैश्या और हर आदमी वासना का कीड़ा है ।

( कहानी - राजा निरबंसिया 'कमलेश्वर')

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11 MAY 2021 AT 3:45

दीदी तुम्हारी साड़ी आज तक धोयी नहीं है.... तुम्हारा जैकेट आज भी पहन कर तुरंत निकाल देती हूं

जब भी तुम्हारे बिना रहना मुश्किल लगता है ना तो महज़ खुशबू के लिए अपने बदन पर डाल लेती हूँ!!!

...............

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8 MAY 2021 AT 16:20

जब कभी मैं सोचती हूँ कि जिंदगी बहुत कठिन है.. इसमे बहुत मुश्किलें हैं तो मैं अपने परिवार और दोस्तों को देखती हूँ और पाती हूँ कि आज एक साल हुए सबको अपने घर में ही कैद हुए पर फिर भी बिना किसी मतलब के बिना किसी उम्मीद के वो मुझसे इतना प्यार करते हैं। मेरी फिक्र करते है, मेरा हाल पूछते हैं । ये लोग इतने प्यारे कैसे हो सकते हैं । मेरे मन में हमेशा इन्हे देखकर यही विचार आता है कि यार... लोग इतने अच्छे कैसे होते हैं?

जिंदगी इतनी मुश्किल नहीं है जितना हम उसे बता देते है...बहुत खूबसूरत है अगर इसके पल पल का आनंद लिया जाए. थोड़ी उम्मीदें कम करके देखा जाए तो छोटी छोटी बातें अधिक प्रसन्न कर देती हैं ।

मैं बहुत किस्मत वाली हूँ जो मेरा परिवार मेरे दोस्त इतने अच्छे हैं.. मुझे बिना किसी मतलब के इतना प्यार करते हैं..और इस छोटी सी उम्र में इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए 🙏

और कोई मतलबी होता भी नहीं है आप इतने भी useful नहीं हैं 😂 .... उसके बाद भी अगर आपको लगता हैं कि लोग बदल गए आपसे उनका मतलब निकल गया तब ये समझ लीजियेगा की सबसे बड़े मतलबी आप थे और ऐसे में आपके पास कोई नज़र नहीं आयेगा ।


मेरे परिवार और ख़ास दोस्तों को धन्यवाद...
I Love you ❤

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24 JAN 2021 AT 15:42

काव्य प्रयोजन

वेदनाओं से उद्विग्न मन जब शांति चाहता है
ना जाने क्यूँ बस कोरे पन्ने व कलम निहारता है।
कलम के स्याही से विचार पन्नो पर उतार
मन खुद को निश्चिन्त , निर्द्वंद् पाता है।

मन अनेक विषय के विचार गह रहे थे।
कुछ को स्याही ने समेटा तो ,
कुछ विचारों की धाराओं मे ही बह रहे थे।
कहीं उन रचनाओ का उद्देश्य था उपदेश
तो कहीं लेखक व पाठक दोनो आनंद ले रहे थे।

बस यही काव्य प्रयोजन जो काव्य शास्त्र बताते है,
मन से लिखी रचनाओं में वे प्रयोजन सिद्ध नज़र आते है।

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