ईश्वर का प्रसाद नहीं
जो बगैर भेदभाव सबके हाथ रख दो
अंतर्रात्मा से करो परख
जाति-धर्म के चश्मे को परे रख
एक संपूर्ण व्यक्तित्व को
जो सक्षम हो
देश की संस्कृति अक्षुण्ण रखनें में
गरीबों की थाली भरने में
बगैर भेदभाव जो करे सर्वांगीण विकास
जो आपके सपनों को दे संपूर्ण आकाश
साथ उसका दीजिए
जो आपको न छोड़े कभी अकेला
आप हो देश या विदेश में
गर्व हो आपको स्वदेश का
जो नित नूतन कदम बढ़ाए
सोनें की चिड़ियां की
चहचहाहट पुनः लौटाए
विवेचना करिए.. करिए मंथन
वो कौन है जो विकास का
नित दे रहा है उदाहरण
बिना थके ..बिना रुके
समझता है देश को जो अपना परिवार
अपने अधिकार का करिए सही उपयोग
देश के अभिमान के लिए
अपने स्वाभिमान के लिए
भारतीय संस्कृति की
वैश्विक पहचान के लिए
अपना मंतव्य.. मतदान..!
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