Jaya Mishra   (जया मिश्रा 'अन्जानी')
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Joined 1 August 2017


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21 HOURS AGO

दृष्टि
का बोध
चेतना है

और
द्रष्टा का बोध
आत्मज्ञान!

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23 APR AT 17:20

मन
मंथरा है !

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17 APR AT 2:51

राम की पीड़ा
(कविता अनुशीर्षक में)

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5 APR AT 0:36

प्रेमपत्र (भाग-२)

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4 APR AT 20:03

पीड़ा के संग-संग बह रहा
यह तिमिर जैसे रुधिर हो
इतना विवश एक भाव जो
मूक भी हो और बधिर हो

अतीत में इतना गरल है
जैसे स्मृति कोई सर्पिणी हो
कविताओं को धारे उदर में
जैसे निशा कोई गर्भिणी हो!

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16 MAR AT 22:44

प्रिय भानु,

ये जो तुम
चंद्रमा को
लक्ष्मण की भाँति
मेरी रक्षा के लिए
छोड़ जाते हो

मैंने कब तुमसे
स्वर्णमृग माँगा था?

-तुम्हारी धरित्री

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16 MAR AT 19:17

अगर
तुम्हें भी
अंधेरों से
डर लगता है
तो तुममें भी
एक अज्ञात
‘भानुप्रेमी’ है!

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10 MAR AT 23:18

ग्लानि
तुम्हें खाएगी

बाघिन
की तरह नहीं

दीमक की तरह!

-


26 FEB AT 16:20

जहाँ
कुछ भी नहीं
बचता
वहाँ भी अंततः
स्मृतियाँ
बच जाती हैं!

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22 FEB AT 13:07

दुःख
केवल
‘मैं’ को
व्याप्त
करता है!

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